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by the mind.)
The 288 sub-divisions of knowledge relates to determinable sense objects.
अर्थ (वस्तु के) अवग्रह, ईहा, आवाय और धारणा ये चारों मतिज्ञान होते
हैं।
अवग्रह आदि विशेषण से विशिष्ट पदार्थ के अवग्रह आदिज्ञान होते हैं। चक्षु आदि के विषयभूत पदार्थ को अर्थ कहते हैं ।
अवग्रह आदि केवल गुण के नहीं होते है परन्तु गुण सहित गुणी अर्थात् द्रव्यों के होते हैं। क्योंकि अमूर्तिक गुणों का इन्द्रिय से सम्बन्ध नहीं हो सकता
है।
जो पर्यायों को प्राप्त होता है, अथवा पर्यायों के द्वारा प्राप्त होता है उस द्रव्य को 'अर्थ' कहते हैं। जो अन्तरंग एवं बहिरंग निमित्त के कारण से उत्पत्ति प्रति तत्पर स्वकीय पर्यायों को प्राप्त होता है वा पर्यायों के द्वारा किया जाता है उसे अर्थ कहते हैं और वह अर्थ ही द्रव्य है ।
शंका- ये रूपादि गुण सूक्ष्म हैं, यदि इन्द्रियों के द्वारा उनका सन्निकर्ष नहीं हो तो " मैने रूप देखा, मैने गंधसूंघी” इत्यादि परिणति नहीं होनी चाहिये परन्तु परिणति होती है ?
उत्तर- मैने रूप देखा, गंधसूंघी इत्यादि जो प्रवृति होती है अर्थात् रूपादि का ग्रहण होता है वह पदार्थ से अभिन्न होने से, पदार्थ के ग्रहण से उन गुणों का भी इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण हो जाता है।
अवग्रह ज्ञान में विशेषता व्यञ्जनस्यावग्रहः । ( 18 )
There is only perception i.e. indeterminable subject, (i.e. of a thing of which we know very little, so little that we can not proceed to the Iha Conception, Judgement and retention of it.
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