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________________ उक्त Described. ध्रुव Lasting. अध्रुव Transient. सेतर (प्रतिपक्ष सहित) बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिःसृत, अनुक्त और ध्रुव के अवग्रह, ईहा, आवाय और धारणा रूप मतिज्ञान होते हैं। अवग्रह आदिक जो ज्ञान होते है उनके विषयभूत पदार्थों का वर्णन इस सूत्र में किया गया है। यथा, ( 1 ) बहु ( 2 ) एक (3) बहुविध (4) एकविध (5) क्षिप्र ( 6 ) अक्षिप्र ( 7 ) अनि:सृत ( 8 ) निःसृत ( 9 ) अनुक्त ( 10 ) उक्त ( 11 ) ध्रुव ( 12 ) अध्रुव । गोम्मट्टसार जीवकाण्ड में इसका सविस्तृत वर्णन निम्न प्रकार किया गया 1. बहु 2. एक बहुवत्तिजादिगणे बहुबहुविहमियरमियरगहणम्हि । सगणामादो सिद्ध खिप्पादी सेद्रा य तहा ॥ ( 311 ) (nt.ft.120) 3. बहुविध 4. व Jain Education International - एक जाति के बहुत से व्यक्तियों को 'बहु' कहते हैं। जैसेमनुष्यों का समूह। एक जाति के एक व्यक्ति को 'एक' कहते हैं। जैसे- एक मनुष्य । • बहुत प्रकार के व्यक्तियों के समूह को 'बहु-विध' कहते हैं। जैसे - विभिन्न देश के विभिन्न संस्कृति व विभिन्न वेष-भूषाओं के मनुष्यों के समूह । - • एक जाति के अनेक व्यक्तियों के ज्ञान को 'एक विध' कहते है। जैसे- एक देश एक सम्यता संस्कृति के अनेक मनुष्य । For Personal & Private Use Only 73 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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