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(2) छेदोपस्थापना (3) परिहार विशुद्धिदि (4) सूक्ष्म साम्पराय (5) यथाख्यात चारित्र)। यह सब तीन लोक से पूजित अहंत परमेष्ठी के द्वारा मूलभूत तत्त्व कहा गया है। जो इसकी प्रतीति (श्रद्धा, विश्वास), ज्ञान, करता है और उनके अनुसार उसका स्पर्श (अनुकरण, आचरण) करता है वह बुद्धिमान है वही शुद्ध दृष्टि सम्पन्न है। इस श्लोक में मोक्षमार्ग, मोक्षमार्ग के कारणभूत तत्त्व, उपाय, सम्यग्दर्शन, सम्यग्दर्शन के विषय भूत तत्त्व का संक्षिप्त, सांगोपाग वर्णन किया गया है।
'उपाध्याय श्री कनकन्दी के विचारामृत' 1. मैं दूसरों की सहमति की अनिवार्यता स्वीकार नहीं करता हूँ
परन्तु मेरी मति सतत् सन्मति हो इसकी अनिवार्यता स्वीकार
करता हूँ। 2. सत्य ही मेरा भगवान है। . 3. सत्य की उपलब्धि ही महान् उपलब्धि है। 4. सत् का विनाश नहीं होता है एवम् असत् का प्रादुर्भाव नहीं __ होता है। 5, स्वयं को जानना, मानना, पाना ही भगवान को जानना, मानना,
पाना है।
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