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________________ 2. बकुश They are still slightly coloured by some consideration of their body, books and disciples. 3. कुशील Sometimes there is a very slight lapse in the perfect observance of their secondary vows उत्तरगुण। 4. निर्ग्रन्थ The absolutely passionless in the 11th and 12th stages. 5. स्नातक The Kevali in the 13th and 14th stages. पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये पाँच निर्ग्रन्थ हैं। (1) पुलाक:- अपरिपूर्णव्रत वाले और उत्तरगुण से रहित पुलाक होते हैं। जिनके मन में उत्तरगुणों के पालन करने की भावना नहीं है, मूलगुणों की भी कभी-कभी विराधना करते हैं अर्थात् मूलगुणों का भी परिपूर्ण पालन नहीं करते हैं, वे बिना पके वा जिसमें पूर्ण शुद्धि नहीं हुई है, उस पुलाक धान्य के समान व्रतों की शुद्धि न होने से पुलाक इस नाम को धारण करते हैं, अर्थात् पुलाक कहलाते हैं। (2) बकुश :- जो निर्ग्रन्थ यद्यपि मूलगुणों का अखण्ड रूप से (निर्दोषता से) पालन करते हैं, परन्तु शरीर और उपकरणों की सजावट में जिनका चित्त लगा है, यश और ऋद्धियों की जो कामना करते हैं, साता और गौरव से युक्त हैं, परिवार के ममत्व से जिनकी चित्तवृत्ति निवृत्त नहीं हुई है और छेद से जिनका चित्त शबल अर्थात् चित्रित है, क्योंकि बकुश शब्द शबल का पर्यायवाची है। (3) कुशील :- प्रतिसेवना कुशील और कषाय कुशील के भेद से कुशील मुनि दो प्रकार के हैं। यहाँ कुशील का अर्थ व्यभिचार नहीं हैं। परिग्रह की भावना सहित (अन्तरंग में कमण्डलु आदि परिग्रह की अभिलाषा बनी रहती है) मूल और उत्तर गुणों में परिपूर्ण कभी-कभी उत्तरगुणों की विराधना करने वाले प्रतिसेवनाकुशील कहलाते हैं। ग्रीष्मकाल में उष्णता के कारण जंघाप्रक्षालन आदि का सेवन की इच्छा होने से जिनके संज्वलन कषाय जगती है और अन्य कषायें वश में हो चुकी हैं, वे कषाय कुशील कहलाते हैं। (4) निर्ग्रन्थ :- जैसे पानी में खींची गई रेखा शीघ्र ही विलीन हो जाती है 623 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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