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जैसे-दुर्योधन पाण्डवों को अनिष्टं जानता था और उनको राज्य से निकालने के लिए, मारने के लिए योजना बनाता था। ला ही नहीं इस अनिष्ट संयोगज आर्तध्यान के कारण ही महाभारत जैसे जन धन संहारक महायुद्ध हुआ। परिवार में भी दुष्टा बहु, दुष्टा सास, दुष्टा भाई बन्धु के कारण इस प्रकार का अनिष्ट संयोगज आर्तध्यान होता है कलह होती है एवं संयुक्त परिवार टुकड़े-टुकड़े में बिखर जाता है। इस ध्यान का वर्णन ज्ञानार्णव में शुभचन्द्रा चार्य ने निम्न प्रकार किया है
ज्वलनवनविषास्त्रव्यालशार्दूलदैत्यैः। स्थल जलबिल सत्त्वैर्दुर्जनाराति भूपैः। स्वजन धनशरीर ध्वंसिभिस्तैरनिष्टैर्भवति .यदिह योगादाद्यमात तदेतत् ॥(23)
(पृ.416, अ.23) .. अपने कुटुम्बी जन, धनसम्पत्ति और शरीर को नष्ट करने वाले अग्नि, अरण्य (अथवा जल) विष, शस्त्र, सर्प सिंह व दैत्य और स्थल के प्राणी, जल के प्राणी एवं बिल के प्राणी (सर्पादि) और दुर्जन, शत्रु व राजा इत्यादि; इन अनिष्ट पदार्थों के सम्बन्ध से जो यहाँ संक्लेश और चिन्ता होती है उसका नाम प्रथम आर्तध्यान है।
..' तथा चरस्थिरैर्भावैरनेकैः समुपस्थितैः।
- अनिष्टैर्यन्मनः क्लिष्टं स्यादात तत्प्रकीर्तितम्॥(24) . इसके अतिरिक्त चर (चलते-फिरते) और स्थिर अनेक अनिष्ट पदार्थों के उपस्थित होने पर जो मन में क्लेश उत्पन्न होता है उसे आर्तध्यान कहा जाता है।
श्रुतर्दृष्टैः स्मृताते: प्रत्यासत्तिं च संश्रितैः ।
योऽनिष्टार्थैर्मन: क्लेशः पूर्वमात तदिष्यते॥(25) - सुने हुए देखे हुए स्मरण में आये हुए और समीपता को प्राप्त हुए अनिष्ट पदार्थों के निमित्त से जो मन में क्लेश होता है वह प्रथम आर्तध्यान माना जाता है।
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