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________________ शुद्ध परिणाम नहीं हो सकते हैं, क्योंकि कारण के बिना कार्य का संपादन होना त्रिकाल, तीन लोक में असंभव है। इसलिए भी शुभ परिणाम मोक्ष मार्ग में प्राथमिक साधक अर्थात् चतुर्थ गुणस्थान से सातवें गुणस्थान तक के जीवों के लिये हेय नहीं परन्तु उपादेय है। उत्कृष्ट शुभ परिणाम चतुर्थ गुणस्थान में नहीं होता है किन्तु सातवें गुणस्थान में ही होता है। बिना निर्ग्रन्थ मुनि लिङ्ग धारण किये छटवाँ सातवाँ गुणस्थान नहीं हो सकता है। अत: उत्कृष्ट शुभ परिणामों की प्राप्ति के लिये भी निर्ग्रन्थ मुनि लिङ्ग की आवश्यकता है। केवल शुभ परिणाम शुद्ध परिणाम के लिए ही कारण नहीं है किन्तु संवर-निर्जरा के लिए भी कारण है। इतना ही नहीं, शुभ एवं शुद्ध परिणाम के बिना कर्म का क्षय नहीं हो सकता है। सुह सुध्द परिणामेहि कम्मक्खया भावे तक्खयाणुववत्तीदो।" शुभ और शुद्ध परिणामों से कर्मों का क्षय न माना जाय तो फिर कर्मों का क्षय हो ही नहीं सकता है। आत्मानुशासन में गुण भद्राचार्य ने कहा भी है अशुभाच्छुभमायात् शुद्धः स्यादयमागतम्। रवेरप्राप्तसंध्यस्य तमसो न समुद्गमः॥(122) Emerging from evil into good, this (Soul) reaches, with the help of the scriptures, (the Stage of) pure thought activity. Darkness (of ignorance) cannot exist in presence of the pre-evening from sun (of knowledge). . यह आराधक भव्यजीव आगम ज्ञान के प्रभाव से अशुभस्वरूप असंयम अवस्था से शुभरूप संयम अवस्था को प्राप्त हुआ समस्त कर्ममल से रहित होकर शुद्ध हो जाता है। ठीक है-सूर्य जब तक सन्ध्या (प्रभातकाल) को नहीं प्राप्त होता हैं तब तक वह अंधकार को नष्ट नहीं करता है। विधुततमसो रागस्तपः श्रुतनिबंधनः। __संध्याराग इवार्कस्य जन्तोरभ्युदयाय सः॥(123) 593 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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