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शुक्ल (श्वेत वर्ण उज्जवल) हो जाता है, उसी प्रकार गुणों के साधर्म्य से निर्मल गुण रूप आत्मपरिणति भी शुक्ल कहलाती है। ये चारों प्रकार के ध्यान प्रशस्त और अप्रशस्त के भेद से दो प्रकार के है- पाप के कारण भूत ध्यान अप्रशस्त है और कर्म को दहन करने के सामर्थ्य से युक्त ध्यान प्रशस्त कहलाते है। अर्थात् जिससे कर्मो का नाश होता है, वह प्रशस्त ध्यान है। आदि के हो ध्यान (आर्त्त, रौद्र) अप्रशस्त हैं और धर्म्य और शुक्ल ध्यान प्रशस्त हैं।
परे मोक्षहेतु। (29) The last two erofezia, PREZA are the causes of liberation. The other two आर्तध्यान, रौद्रध्यान are the causes of mundane bondage.
उनमें से पर अर्थात् अन्त के दो ध्यान मोक्ष के हेतू हैं। ‘परे मोक्षहेतु' धर्मध्यान और शुक्लध्यान मोक्ष के कारण है, ऐसा कहने पर परिशेष न्याय से पूर्व आर्त, रौद्रध्यान संसार के कारण हैं, यह जाना जाता है क्योंकि तीसरे साध्य का अभाव है अर्थात् संसार और मोक्ष को छोड़कर तीसरा कोई भेद या अवस्था
नहीं हैं।
इस सूत्र में कहा गया है कि धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान दोनों मोक्ष के लिए कारण है। एकाग्रचिंता निरोध ध्यान होने के कारण जब तक चिंता (भावमन) रहती है तब तक ध्यान होता है। भावजन का अभाव 12 वें गुणस्थान के अंत तक हो जाता है इसलिए वस्तुत: 13वें 14वें गुणस्थान में उपचार से शुक्ल ध्यान है और सिध्द अवस्था में उपचार से भी ध्यान मात्र का भी आभाव है। इस से सिद्ध होता है कि ध्यान आत्मा का स्वभाव नहीं है परन्तु मोक्ष मार्ग के लिए कारण है। कुछ आधुनिक एकान्त वादी आध्यात्मिक शास्त्र एवं शुद्ध नेय का बहाना (आड़) लेकर शुक्ल ध्यान को तो मोक्ष का कारण मानते हैं और धर्मध्यान को संसार का कारण मानते हैं किन्तु सूत्रकार के सूत्रों से स्वयं इस मत का खण्डन हो जाता है। शुभ-ध्यान शुभ परिणाम से होता हैं तथा शुभ परिणाम सम्यग्दर्शन पूर्वक होता है। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान सहित एवं देशचारित्र एवं सकल चारित्र पूर्वक जो शुभक्रिया या शुभध्यान होता है वे सब पुण्यबंध के साथ-साथ पाप के संवर निर्जरा का कारण बनते हैं। जो
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