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को चिंता कहते हैं।
अनियत क्रियार्थ का नियतक्रिया अकर्तृत्व से अवस्थान होना निरोध है। गमन, भोजन, शयन और अध्ययन आदि विविध क्रियाओं में अनियम रूप से भटकने वाली चित्तवृत्ति को एक क्रिया में रोक देना निरोध है, ऐसा जाना जाता है। एक 'अग्र' मुख जिसके है वह एकाग्र है, उस एक अग्र में चिंता का निरोध एकाग्रचिंतानिरोध है। प्रश्न- यह एकाग्रत्व से चिंता निरोध कैसे होता है ? . दीपक की शिखा के समान वीर्यविशेष के सामर्थ्य से चित्तवृत्ति का एक स्थान में निरोध हो जाता है। जैसे-निराबाध (वायुरहित) प्रदेश में प्रज्वलित दीपशिखा परिस्पन्दन नहीं करती है, स्थिर रहती है, उसी प्रकार निराकुल स्थान में (एकलक्ष्य में) शक्तिविशेष से अवरूध्यमान (रोकी गई) चित्तवृत्ति, बिना व्याक्षेप के एकाग्रता से स्थिर रहती है, अन्यत्र नहीं भटकती।
_ 'एकं अग्रं' एक द्रव्य परमाणु या भावपरमाणु या अन्य किसी अर्थ में चिन्ता को (चित्त वृत्ति को) नियमित करना, केन्द्रित करना, स्थिर करना, एकाग्र चिन्तानिरोध है।
मुहूर्त का परिमाण 48 मिनट है। मुहूर्त कालविशेषवाची है, उसका परिमाण 48 मिनट पूर्व में कह दिया गया है। .. इसमें उत्तम संहनन का कथन, अन्य संहनन से इतने काल तक स्थिर रहने की असमर्थता प्रगट करने के लिये है। अर्थात् उत्तम संहनन वाला जीव ही इतने समय. (अन्तर्मुहर्त) तक एक पदार्थ में चित्तवृत्ति का निरोध कर सकता हैं, अन्य संहनन वाले नहीं। इस बात की सूचना करने के लिये सूत्र में उत्तम संहनन शब्द का प्रयोग किया है।
‘एकाग्र' शब्द व्यग्रता, चंचलता की निवृत्ति के लिये है, क्योंकि ज्ञान व्यग्र होता है और ध्यान एकाग्र, अत: ध्यान की एकाग्रता को प्रकट करने के लिये एकाग्र शब्द दिया गया है।
ज्ञानात्मकचिन्ता की पर्यायविशेष में ध्यान शब्द का प्रयोग होता है,
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