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तप है।
(5) व्युत्सर्ग तप :- अहंकार और ममकार रूप संकल्प का त्याग करना व्युत्सर्ग
तप है।
(6) ध्यान तप :
चित्त के विक्षेप का त्याग करना ध्यान तप है।
आभ्यान्तर पर के उत्तर भेद
नवचतुर्दशपञ्चद्विभेदा यथाक्रमं प्राग्ध्यानात् । ( 21 )
| The अभ्यन्तर तप Internal austerities previous to ध्यान concentration
or meditation are respectively of 9, 4, 10,5 and 2 Kinds.
ध्यान से पूर्व के आभ्यान्तर तपों के अनुक्रम से नौ, चार, दश, पांच और दो भेद हैं।
अर्थात् प्रायश्चित के नौ, विनय के चार, वैयावृत्य के दस, स्वाध्याय के पाँच और व्युत्सर्ग के दो भेद है।
प्रायश्चित्त के नव भेद आलोचनप्रतिक्रमणतदुभयविवेकव्युत्सर्गतपश्छेदपरिहारोपस्थापनाः ।
(22)
The I Kinds of प्रायश्चित्त expiation are:
1. आलोचन full and voluntary confession to the head of the order.
2. प्रतिक्रमण Self-analysis and repentance for faults.
3. तदुभय Doing both .
4. विवेक Giving up a much beloved object, as a particular food
or drink.
5. व्युत्सर्ग Giving up attachment to the body.
6. तप Austerities of a particular kind prescribed in a penance.
7. छेद Cutting short the standing of a saint by way of degradation. 8. परिहार Rustication for some time.
9. उपस्थापना Fresh re-admission, after explulsion from the order.
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