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उपर्युक्त प्रज्ञादि परीषहों से अतिरिक्त क्षुत्पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल, ये ग्यारह परीषह शेष शब्द से निर्दिष्ट हैं अतः ये ग्यारह परीषह वेदनीय कर्म के उदय में होती है।
एक साथ होने वाले परिषहों की संख्या एकादयो भाज्य युगपदेकस्मिन्नैकोन्नविंशतेः । ( 17 )
From 1 to 19 at one and the same time can be possible to a saint (but not more than 19)
एक साथ एक आत्मा में एक से लेकर उन्नीस तक परीषह विकल्प से हो सकती हैं।
शीत, उष्ण, शय्या, निषद्या और चर्या, ये पाँचो एक साथ नहीं होती हैं, अतः एक साथ उन्नीस परीषह होती हैं। अर्थात् शीत-उष्ण में से एक शय्या, निषद्या और चर्या इन तीनों में से एक परीषह एक आत्मा में होती है। क्योंकि ये तीनों एक साथ नहीं रहती अतः शीत और उष्ण में से कोई एक तथा शय्या, निषद्या और चर्या में से कोई एक परीषह होने से और शेष तीन का अभाव होने से एक आत्मा में एक साथ उन्नीस परीषह ही होती हैं, ऐसा जानना चाहिये ।
पाँच चारित्र सामायिकच्छेदोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसांपराययथाख्यातमिति
चारित्रम् । ( 18 )
(1) सामायिक Equanimity.
(2) छेदोपस्थापना, Recovery of equanimity after a fall from it.
(3) परिहारविशुद्धि, Pure and absolute non-injury.
(4) सूक्ष्मसाम्पराय, All but entire freedom from passion.
The 5 kinds of सम्यक् चरित्र Right conduct (are )
(5) यथाख्यात, Ideal and passionless conduct.
सामायिक छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात यह
पाँच प्रकार का चरित्र है ।
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