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होता है।
किस गुणस्थान में कितने परिषह होते हैं ?
सूक्ष्म सांपरायछमस्थवीतरागयोश्चतुर्दश । (10) Fourteen afflictions occur in the case of the saints in the tenth and twelfth stages. सूक्ष्म साम्पराय और छद्यस्थ वीतराग के चौदह परीषह सम्भव हैं। चतुर्दश वचन से अन्य परीषहों का अभाव जानना चाहिये। अर्थात् चौदह ही होती हैं, अन्य नहीं, ऐसा समझना चाहिये। क्योंकि चतुर्दश इस संख्या विशेष का ग्रहण नियम के लिये है कि चौदह ही होती है, अन्य नहीं। ___ यद्यपि सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान में सूक्ष्म लोभ संज्वलन कषाय का उदय है पर वह अत्यन्त सूक्ष्म होने से कार्यकारी नहीं है, मात्र उसका सद्भाव ही है। अतः वीतरागछद्मस्थ कल्प (समान) होने से छद्मस्थ वीतराग के समान सूक्ष्म-साम्पराय में भी चौदह परीषहों का नियम घटित हो जाता है। छद्मस्थ वीतराग के परीषह का अभाव है, ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि बाधाविशेष के उपरम(अभाव) होने पर भी उसके भाव को कहने के लिये सर्वार्थसिद्धि
और सप्तम नरक में गमन करने के सामर्थ्य के समान छद्मस्थ वीतराग के परीषहजय का कथन है।
10,11,12, गुणस्थानों में परीषहों का कथन भक्तिमात्र दिखाने के लिए नहीं है, क्योंकि उन गुणस्थानों में उनका सद्भाव पाया जाता है, जैसे- सर्वार्थसिद्धि के देवों में निरन्तर सातावेदनीय का उत्कृष्ट उदय रहता है फिर भी उनके सप्तम पृथ्वी के गमन का सामर्थ्य नष्ट नहीं होता हैं। अर्थात् सर्वार्थसिद्धि के देव गमन करते नहीं है, परन्तु गमन करने का उनका सामर्थ्य तो नष्ट नहीं होता है, उसी प्रकार वीतराग छदस्थ के भी उस-उस कर्मजन्य परीषहों का सद्भाव पाया जाता है वा कर्मोदय सद्भावकृत परीषहों का व्यपदेश युक्तिसंगत हो जाता है।
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