________________
सर्वकर्म से रहित निर्मल होता हुआ विमल स्थान को प्राप्त कर लेता है । परीषह सहन करने का उपदेश
मार्गाच्यवननिर्जरार्थं परिषोढव्याः परीषहा: । (8)
For the sake of now- falling off from the path of liberation and for the shedding of karmic matter, whatever sufferings are undergone are called the परीषहा sufferings.
मार्ग से च्युत न होने के लिए और कर्मों की निर्जरा करने के लिए जो सहन करने योग्य हो वे परीषह हैं।
सम्यदर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चरित्र को मोक्षमार्ग कहते हैं। यह मोक्षमार्ग संवर एवं निर्जरा सहित है । आम्रव एवं बंध मोक्षमार्ग के विपरीत है। मोक्षमार्ग से च्युत होना अर्थात् रत्नत्रय से च्युत होना, कर्मों के आम्रव एवं बंध करना है । परीषह से जीव भयभीत होकर परास्त होकर रत्नत्रय के मार्ग से च्युत हो जाता है इसलिए यहाँ पर कहा गया है कि, परीषहों को भावपूर्वक आदरपूर्वक सहन करो जिससे संवर, निर्जरा होगी और मोक्षमार्ग में स्थिरता आयेगी ।
परीषहों को जीतने वाले सन्त उन परिषहों के द्वारा तिरस्कृत न होते हुए प्रधान संवर का आश्रय लेकर अप्रबन्ध से क्षपक श्रेणी पर आरुढ़ करने के सामर्थ्य को प्राप्त कर उत्तरोत्तर उत्साह को बढ़ाते हुए सकल कषायों की प्रध्वंस शक्ति वाले होकर ध्यान रूप परशु के द्वारा कर्मों की जड़ को मूल से उखाड़ कर जिनके पंखों पर जमी हुई धूल झड़ गई है, उन उन्मुक्त पक्षियों की तरह पंखों को फड़फड़ाकर ऊपर उठ जाते हैं। इसलिये संवरमार्ग और निर्जरा की सिद्धि के लिये परीषह सहन करनी चाहिये ।
परीषहाद्यविज्ञानादास्रवस्य जायतेऽध्यात्मयोगेन
कर्मणामाशु
आत्मा में आत्मा के चिंतवनरूप ध्यान से परीषहादिक का अनुभव न होने से कर्मों के आगमन को रोकने वाली कर्म - निर्जरा शीघ्र होती है ।
560 Jain Education International
निरोधिनी ।
For Personal & Private Use Only
निर्जरा 11 ( 24 )
(इष्टोपदेश)
आत्मदेहान्तरज्ञानजनिताल्हादनिर्वृतः ।
तपसा दुःष्कृतं घोरं भुञ्जानोऽपि न खिद्यते ॥
www.jainelibrary.org