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करना बोधिदुर्लभानुप्रेक्षा है। इस प्रकार विचार करने वाले इस जीव के बोधि - को प्राप्त करने के लिये कभी भी प्रमाद नहीं होता ।
संसारंहिय अणंते जीवाणं दुल्लहं जुगसमिलासंजोगो लवणसमुद्दे जहा
मणुस्सत्तं । चेव ॥ (757 )
अनन्त संसार में जीवों को मनुष्य पर्याय दुर्लभ है। जैसे लवण समुद्र में युग अर्थात् जुवां और समिला अर्थात् सैल का संयोग दुर्लभ है। देसकुलजन्म रूवं आऊ आरोग्ग वीरियं विणओ ।
सवणं गहणं मदि धारणा य एदे वि दुल्लहा लोए ॥ (758)
( मू.चा. पृ. 31 )
उत्तम देश - कुल में जन्म, रूप, आयु, आरोग्य, शक्ति, विनय, धर्मश्रवण, ग्रहण बुद्धि और धारणा ये भी इस लोक में दुर्लभ ही हैं।
लद्धेसु विदेसु य बोधी जिणसासणानि ण हु सुलहा । कुपहाणमाकुलत्ता जं बलिया रागदोसा य ॥ (759)
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इनके मिल जाने पर भी जिन शासन में बोधि सुलभ नहीं है, क्योंकि कुपथों की बहुलता है और राग- T-द्वेष भी बलवान् हैं।
सेयं भवभयमहणी बोधी गुणवित्थडा मए लद्धा ।
जदि पडिदा ण हु सुलहा तम्हा ण खमो पमादो मे || ( 760 )
सो यह भाव भय का मंथन करने वाली गुणों से विस्तार को प्राप्त बोधि मैने प्राप्त कर ली है। यदि यह छूट जाय तो निश्चित रूप से पुनः सुलभ नहीं है अत्ः मेरा प्रमाद करना ठीक नहीं है। इस लोक की स्थिति को धिक्कार हो जहा पर देव, इन्द्र और महर्द्धिक देव गण भी अतुल सुख को भोगकर पुनः दुखों के भोक्ता हो जाते है ।
दुल्लहलाहं लद्धूण बोधिं जो णरो पमादेज्जो ।
सो पुरिसो कापुरिसो सोयदि कुगदिं गदो संतो || (761 )
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जो मनुष्य दुर्लभता से मिलनेवाली बोधि को प्राप्त करके प्रमादी होता है वह पुरुष कायर पुरुष है । वह दुर्गति को प्राप्त होता हुआ शोच करता है।
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