SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 551
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भेद से लोभ चार प्रकार का है। स्व पर विषय के भेद से प्रत्येक लोभ दो प्रकार का है। जैसे- स्वजीवन लोभ, पर- जीवन लोभ, स्व-आरोग्य लोभ, पर आरोग्य लोभ, स्व इन्द्रिय लोभ, पर इन्द्रिय लोभ, और स्व-उपभोग लोभ, पर उपभोग लोभ । अपने जीवन, इन्द्रिय, विषय, आरोग्य और उपभोग सामग्री की कांक्षा रूप चार प्रकार के लोभ की निवृत्ति लक्षण वाला शौचधर्म भी मुख्यता से चार प्रकार का है। शुचि आचार वाले निर्लोभ व्यक्ति का इस लोक में सर्व लोग सम्मान करते हैं। विश्वास आदि उसका आश्रय लेते हैं । अर्थात् निर्लोभ व्यक्ति का सर्वजन विश्वास करते हैं । लोभ से आक्रान्त हृदय में गुण नहीं रहते हैं, लोभी M इस लोक (भव) में अचिन्त्य दुःख और परलोक में दुर्गति को प्राप्त होता है। अर्थात् इहपरलोक में लोभी अनेक दुःख भोगता है। 5. उत्तम सत्य:- सत् जनों के साथ साधु वचन बोलना सत्य है। सत् प्रशंसनीय मनुष्यों के साथ प्रशंसनीय वचन बोलना उत्तम सत्य कहलाता है। वह सत्य दस प्रकार का है। भाषा समिति में सत्य धर्म का अन्तर्भाव नहीं हो सकता, क्योंकि भाषा समिति में संयत साधु (साधर्मी) असाधु ( विधर्मी) के साथ भाषा का व्यवहार करते समय हित और मित वचन बोलता है। यदि साधु - असाधु में हित, मित वचनों का प्रयोग न करे तो राग और अनर्थदण्ड आदि दोषों का प्रसंग आता है, ऐसा समिति का लक्षण कहा है, परन्तु सत्य धर्म में अपने सहधर्मी साधुओं या भक्तों के साथ धर्मवृद्धि के निमित्त या ज्ञान, चारित्र के शिक्षण आदि के लिए प्रशंसनीय बहुत बोलना स्वीकृत है अर्थात् सत्य धर्म वाला अपने सहधर्मियों के साथ धर्मवृद्धि के निमित्त अधिक भी बोल सकता है। (6) उत्तम संयम:- भाषादि की निवृत्ति संयम नहीं है, क्योंकि भाषा आदि की निवृत्ति का गुप्ति में अन्तर्भाव हो जाता है। गुप्ति निवृत्ति रूप है इसलिये निवृत्ति रूप गुप्तियों में भाषादि की निवृत्ति का अन्तर्भाव हो जाने से संयम का अभाव हो जाता है। समितियों में प्रवृत्ति करने वाले के प्राणी और इन्द्रियों का परिहार संयम है। ईर्या समिति आदि में प्रवृत्ति करने वाले मुनि के जो समितियों की प्रतिपालना 536 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy