________________
आदि की प्राप्ति होती है और क्रोध से धर्मादि सर्व गुणों का नाश होता है, ऐसा चिंतन करके क्षमा धारण करनी चाहिये। अथवा पर (दूसरे) के द्वारा प्रयुक्त गाली आदि क्रोध निमित्त का अपनी आत्मा में भावाभाव का चिंतन करना चाहिए कि ये दोष मुझ में विद्यमान है ही यह क्या मिथ्या कहता है? ऐसा विचार करके गाली देने वाले को क्षमा करना चाहिये (यह भाव चिंतन है)। यदि यह दोष अपने में नहीं है तो यह दोष मुझमें नहीं है, अज्ञान के कारण यह बेचारा ऐसा कहता है इस प्रकार अभाव का चिन्तन करके क्षमा करना चाहिये।
अथवा गाली वा आक्रोश वचन कहने वाले के बाल (मूर्ख) स्वभाव का चिन्तन करना चाहिये। परोक्ष, प्रत्यक्ष, आक्रोश, ताडन-मारण, धर्मभ्रंश आदि का उत्तरोत्तर रक्षार्थ विचार करना चाहिये। जैसे-कोई बालक (मूर्ख) परोक्ष में गाली देता है, कटु वचन कहता है तो बालक पर क्षमा ही करनी चाहिये। सोचना चाहिए कि मूखों का यह स्वभाव ही है। भाग्यवश यह मुझे परोक्ष (पीठ पीछे) हो गालीदेता है, प्रत्यक्ष तो नहीं। मूर्ख तो मुँह पर गाली देते हैं। अत: लाभ ही है ऐसा मानना चाहिए। यदि मूर्ख प्रत्यक्ष गाली देता है तो सोचना चाहिए कि वह भाग्यवश मुझे गाली ही देता है, मारता तो नहीं, ऐसा विचार कर क्षमा करना चाहिए। वा गाली देना बालकों का स्वभाव ही है, मेरा तो इसमें लाभ ही है, ऐसा मानना चाहिए कि मूर्ख तो मारते भी हैं। यदि मूर्ख मारता है तो विचारना चाहिये कि भाग्यवश यह मुझे मारता ही है, प्राण तो नहीं लेता है, प्राणों से रहित तो नहीं करता है, मूर्ख तो प्राण भी लेते हैं, यह तो मुझे लाभ ही है, ऐसा मानना चाहिए। प्राण ले लेने पर भी क्षमा ही करना चाहिये। विचार करना चाहिये कि भाग्यवश यह मुझको मारता ही है, मेरे प्राण ही लेता है, मेरा धर्म तो नष्ट नहीं करता। इस प्रकार बाल स्वभाव के चिन्तन द्वारा चित्त में क्षमा भाव को पुष्ट करना चाहिए अथवा सोचना चाहिए कि यह मेरा ही अपराध है जो मैंने पूर्व में महान् दुष्कर्म किये थे, उसके फलस्वरूप मुझे ये गाली-कुवचन सुनने पड़ रहे हैं। यह गाली देने वाला तो इसमे निमित्तमात्र है, इसमें मूल कारण तो मेरा पूर्वोपार्जित कर्म ही है ऐसा विचार करके सहन करना चाहिए।
534
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org