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सो ज्ञान और तप में चेष्टा सो चारित्र इस प्रकार व्यवहार मोक्षमार्ग है।
आतम को हित है सुख, सो सुख आकुलता बिनकहिये। आकुलता शिवमाहिं न तातें, शिवमग लाग्यो चहिये। सम्यग्दर्शन-ज्ञान चरण शिव मग सो द्विविध विचारो। जो सत्यारथ रूप सो निश्चय कारण सो ववहारो॥
(छहढाला) सम्यग्दर्शन का लक्षण
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् 1 (2) Belief on conviction in things ascertained as they are, (is) right belief.
तत्त्व :- वस्तु के यथार्थ स्वरूप सहित अर्थ- जीवादि पदार्थों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है।
प्रथम सूत्र में मोक्षमार्ग का संक्षिप्त वर्णन करते हुए कहा गया है कि रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है। अभी इस सूत्र में सम्यग्दर्शन की परिभाषा की गई है। विश्व में जो पदार्थ जिस रूप में अवस्थित है उसका उस रूप होना तत्त्व है। तत्त्व का जो अर्थ है उसको तत्त्वार्थ कहते हैं। उस तत्त्वार्थ का श्रद्धान (प्रतीति, विश्वास, रूचि) ही सम्यक् दर्शन है। जैन दर्शन की कुंजी स्वरूप द्रव्य संग्रह में कहा भी गया है:
जीवादिसद्दहणं सम्मत्तं रूवमप्पणो तं तु। - दुरभिणिवेसविमुक्कं णाणं सम्मं खु होदि सदि जम्हि ॥(41)
(द्र.सं.) :- जीव आदि पदार्थों का जो श्रद्धान करना है वह सम्यक्त्व है और वह
सम्यक्त्व आत्मा का स्वरूप है। और इस सम्यक्त्व के होने पर संशय, विपर्यय तथा अनध्यवसाय इन तीनों दुरभिनिवेशों से रहित होकर ज्ञान सम्यग्ज्ञान कहलाता
उपरोक्त सम्यग्दर्शन की परिभाषा अधिकत: द्रव्यानुयोगनिष्ठ है। समन्तभद्र
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