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________________ The obstruction of influx is stoppage. आस्रव का निरोध करना संवर है। अष्टम अध्याय तक जीव, अजीव, आम्रव, बंधतत्त्वों का वर्णन हो चुका है । इस अध्याय में संवर एवं निर्जरा तत्त्व का सविस्तार से वर्णन है । आम्रव एवं बंध तत्त्व संसार के लिए कारण तथा संवर और निर्जरा तत्त्व मोक्षं के लिए कारण है। अध्याय 9 संवर और निर्जरा तत्त्व का वर्णन STOPPAGE AND SHEDDING OF KARMA संवर का लक्षण आस्रवनिरोधः संवरः । ( 1 ) आस्रव के विपरीत तत्त्व संवर तत्त्व है। नूतन कर्म के आगमन को आम्रव कहते हैं तो उसके निरोध को संवर कहते हैं। यह संवर दो प्रकार का है। (1) भाव संवर, (2) द्रव्य संवर। जिस भाव से संसार का विच्छेद होता है या द्रव्य संवर के लिए जो मूल कारण है उसे भाव संवर कहते हैं। इस भाव संवर के द्वारा आगत कर्म परमाणुओं का निरोध हो जाना द्रव्य संवर है। जैसे - पानी में रहने वाले जहाज में छिद्र हो जाने पर उस छिद्र के माध्यम से पानी का आगमन उस जहाज में होता है। जब उस छिद्र को बन्द कर दिया जाता है तब पानी आना रुक जाता है। थोड़ा-थोड़ा पानी निकालने पर पानी कम होता जाता है। पूर्ण पानी निकाल देने से जहाज पानी के भार से मुक्त हो जाता है। इसी प्रकार मिथ्यात्व आदि भावात्मक छेद से कर्मों का आगमन होना आम्रव है। आत्मा में कर्म का अवस्थान होना बंध है। मिथ्यात्वादि आम्रव द्वार को सम्यक्त्वादि भावों से रोकना भाव संवर है । इन भावसंवर से आगत कर्मों का रुक जाना द्रव्य संवर है । तपादि से एक देश कर्मों का क्षय करना निर्जरा है । रत्नत्रय से पूर्ण कर्मों का क्षय करना मोक्ष है । द्रव्य संग्रह में कहा भी है 520 Jain Education International चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदू । सो भावसंवरो खलु दव्वासवरोहणे अण्णो ।। (34) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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