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पाँच, नरकगति, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, ये चार जातियाँ, समचतुरस्र संस्थान को छोड़कर पाँच संस्थान, वज्रवृषभनाराच संहनन को छोड़कर पाँच संहनन, अप्रशस्त और प्रशस्त के भेद से स्पर्शादि दो प्रकार के हैं, उनमें अप्रशस्त स्पर्श, अप्रशस्त त्रस, अप्रशस्त गंध, अप्रशस्त वर्ण, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण शरीर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, अयशस्कीर्ति, दे 34 प्रकृतियाँ नाम कर्म की तथा नरकायु, असाता वेदनीय और नीच गोत्र ये मिलकर बयासी (82) पाप प्रकृतियाँ हैं।
अभ्यास प्रश्न 1. बन्ध किन-किन कारणों से होता है ? 2. कर्म बन्ध किसे कहते हैं? 3. कर्म बन्ध के कितने भेद हैं? 4. प्रकृति बन्ध के मूल भेद कितने है तथा उनकी परिभाषा लिखिये? 5. ज्ञानावरण कर्म के भेद कितने हैं? 6. दर्शनावरणी कर्म के भेदों की परिभाषा लिखिये?
7. चारित्र मोहनीय कर्म के उत्तर भेद के नाम लिखो ? ____8. नामकर्म का वर्णन करो?
9. उच्च गोत्र एवं नीच गोत्र किसे कहते हैं? 10. अन्तराय कर्म के उत्तर भेद लिखो? । 11. कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति एवं जघन्य स्थिति कितनी-2 है वर्णन करो? 12. अनुभाग बन्ध किसे कहते हैं ? 13. निर्जरा कैसे होती है ?
14. प्रदेश बन्ध का सविस्तार वर्णन करो? . 15. पुण्य प्रकृतियाँ कौन-कौन सी है?
16. पाप प्रकृतियाँ कौन-कौन सी हैं ?
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