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________________ एयाणेयक्खेत्तटिठयरूविअणंतिमं हवे जोगं । अवर्सेस तु अजोग्गं सादि गणादी हवे तथ्थ ॥ ( 187 ) ॥ एक तथा अनेक क्षेत्रों में ठहरा हुआ जो पुद्गल द्रव्य उसके अनन्तवें भाग पुद्गल परमाणुओं का समूह कर्म रूप होने योग्य हैं, और बाकी अनन्त बहुभाग प्रमाण कर्म रूप होने के अयोग्य है। इस प्रकार 1. एक क्षेत्र स्थित योग्य 2. अनेक क्षेत्रस्थित योग्य 3. अनेक क्षेत्र स्थित योग्य 4. अनेक क्षेत्र स्थित योग्य चार भेद हुए। इन चारों में भी एक-एक के सादि और अनादि भेद जानना । सगसगखेत्तगयस्स य अणंतिमं जोग्गदव्वगयसादी । अजोग्गसंगयसादी होदित्ति सेसं अपने-अपने एक तथा अनेक क्षेत्र में रहने वाले पुद्गल द्रव्य के अनन्तवें भाग योग्य सादि द्रव्यं है, और इससे बाकी अनंत बहुभाग अयोग्य सादि द्रव्य है, ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है। अनादि द्रव्य का प्रमाण: सगसगसादिविहीणे जोग्गाजोग्गे य होदि णियमेण । जोग्गाजोग्गाणं अणादिदव्वाण परिमाणं ।। (190) forfaço II(188) 11 पुण एक क्षेत्र में स्थित योग्य-अयोग्य द्रव्य तथा अनेक क्षेत्र में मौजूद योग्य वा अयोग्य द्रव्य का जो परिणाम है उसमें अपना-अपना सादि द्रव्य का प्रमाण घटाने से जो बचे वह क्रम से एक क्षेत्र स्थित योग्य अनादि द्रव्य का एक क्षेत्र स्थित अयोग्य अनादि द्रव्य का, अनेक क्षेत्र स्थित योग्य अनादि द्रव्य का, अनेक क्षेत्र स्थित अयोग्य अनादि द्रव्य का परिमाण जानना । यह जीव. मिथ्यात्वादिक के निमित्त से समय समय प्रति कर्मरूप परिणमने योग्य समयप्रबद्ध प्रमाण परमाणुओं को ग्रहण कर कर्मरूप परिणमाता है। उनमें किसी समय तो पहले ग्रहण किये जो सादि द्रव्य रूप परमाणु हैं उसका ही ग्रहण करता है किसी समय में अभी तक ग्रहण करने में नहीं आये ऐसे अनादि द्रव्य रूप परमाणुओं का, और कभी दोनों का ग्रहण करता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only 515 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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