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________________ यह जीव अपने सब प्रदेशों से मिथ्यात्वादिक के निमित्त से बांधता है अर्थात् कर्म रूप पुद्गलों का आत्मा के प्रदेशों के साथ संबंध होना प्रदेश बन्ध है। यहाँ पर सूक्ष्म निगोद जीव की घनांगुल के असंख्यातवे भाग अवगाहना (जगह) को एक क्षेत्र जानना। अथवा पंचम अध्याय में सविस्तार से वर्णन जिस आकाश प्रदेश में एक परमाणु अवकाश लेता है उसे एक प्रदेश कहते हैं ऐसे ही आत्मा के अविभागी अंश का प्रदेश कहते हैं। सूत्र में एक समय में जो प्रदेश बंध होते हैं उसकी संख्या अनन्तानन्त दी गई है। उस अनंतानंत का स्पष्टीकरण करने के लिए गोम्मट्टसार में कहा सिद्धाणंतिमभागं अभव्वसिद्धादणंतगुणमेव। . समयपबद्धं बंधदि जोगवसादो दु विसरित्थं ॥4॥ यह आत्मा सिद्धजीवराशि के जो कि अनन्तानन्तप्रमाण कही है अनन्तवें भाग और अभव्य जीव राशि जो जघन्य युक्तानन्त प्रमाण है उससे अनन्त गुणे समय प्रबद्ध को अर्थात् एक समय में बंधने वाले परमाणु समूह को बांधता है :- अपने साथ सम्बद्ध करता है। परन्तु मन, वचन, काय की प्रवृत्ति रूप योगों की विशेषता से (कमती बढ़ती होने से) कभी थोड़े और कभी बहुत परमाणुओं का भी बंध करता है। परिणामों में कषाय की अधिकता तथा मन्दता होने पर आत्मा के प्रदेश जब अधिक वा कम सकम्प (चलायमान) होते हैं तब कर्म परमाणु भी ज्यादा अथवा कम बंधते हैं। जैसे :- अधिक चिकनी दीवाल पर धूलि अधिक लगती है और कम चिकनी पर कम। सम्पूर्ण विश्व में 23 (तेईस) वर्गणाएँ खचाखच भरी हुई है। उसमें से एक वर्गणा है कार्माण वर्गणा। कार्माण वर्गणा ही कर्म रूप में परिणमन करती है। तथापि सभी कर्माण वर्गणा एक साथ कर्मरूप में परिणामन नहीं करती हैं। कार्माण वर्गणा में से कुछ कार्माण वर्गणायें ही एक समय कर्म रूप में परिणमन करती है। कहा भी है: 514 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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