________________
की चार और नौ नोकषाय, ये देशघाती प्रकृतियाँ हैं, अवशिष्ट (बची हुई) अघाती कर्म प्रकृतियाँ हैं। शरीर नामकर्म से लेकर स्पर्श पर्यन्त नाम प्रकृतियाँ, अगुरूलघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योत प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ और निर्माण, ये 62 कर्मप्रकृतियाँ पुद्गलविपाकी हैं, चार आनुपूर्वी क्षेत्रविपाकी हैं, आयुकर्म भव धारण कराता है अतः चार
आयुकर्म भवविपाकी हैं और शेष प्रकृतियाँ जीवविपाकी हैं। इस प्रकार सूत्र 21 से सूत्र 23 तक में अनुभवबन्ध का व्याख्यान किया।
प्रदेशबन्ध का वर्णन |
प्रदेशबन्ध का स्वरूप नामप्रत्ययाः सर्वतो योगविशेषात्सूक्ष्मैकक्षेत्रावगाहस्थिताः
___ सर्वात्मप्रदेशेष्वनन्तानन्तप्रदेशाः। (24) According to the nature cused bu their names, from all round, due to the difference in the viberations TNT yoga in the soul activity, not percetible by the senses, the karmic molecules enter and become one and stay with every moment to each soul.
कर्म प्रकृतियों के कारणभूत प्रति समय योगविशेष से सूक्ष्म, एकक्षेत्रावगाही और स्थित अनन्तान्त पुद्गल परमाणु सब आत्म प्रदेशों में सम्बन्ध को प्राप्त होते हैं।
इस सूत्र में प्रदेशबन्ध के कारण प्रदेष बन्ध के समय प्रदेशों की संख्या आदि का वर्णन किया गया है। आप लोग को ज्ञात है कि बंध चार प्रकार के होते हैं। (1) प्रकृति बंध (2) प्रदेश बंध (3) स्थिति बंध (4) अनुभाग बंध। अभी तक पहले के तीन प्रकार के बंधो का वर्णन हो गया है। प्रकरण प्राप्त चौथे प्रदेश बन्ध का वर्णन यहाँ किया गया है।
नाम प्रत्यय का अर्थ यह है कि, अपने नाम के अनुसार सर्व प्रकृतियाँ अपने-अपने अनुभाग के अनुसार बंधती है।
"सर्वतः" शब्द से बताया गया कि संसारी जीव के प्रत्येक भव में प्रत्येक समय में कर्म बन्ध होता है। अर्थात् एक जीव के भूत के अनन्त भव, वर्तमान भू एवं भविष्यत् के संख्यात, असंख्यात एवं अनन्त भव में कर्म बन्ध होते हैं। जब तक जीव अबन्ध अवस्था (13वां गुणस्थान 14 वां और सिध्दावस्था)
512
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org