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भीतर खींचती है और श्वासोच्छवास पर्याप्ति का भी यही लक्षण
है अतः इन दोनों में कोई विशेषता नहीं है। उत्तर :- इन्द्रिय के विषय और अविषय की अपेक्षा दोनों मे भेद है। श्वासोच्छवास
पर्याप्ति तो सर्व संसारी जीवों के होती है, अतीन्द्रिय है - कान या स्पर्श से अनुभव में नहीं आती, परन्तु उच्छ्वास नामकर्म के उदय से पंचेन्द्रिय जीव के जो शीत, उष्ण आदि से जनित दुःख के कारण लम्बे उच्छ्वास निःश्वास होते हैं और जो श्रोत्र इन्द्रिय, स्पर्शन इन्द्रिय के द्वारा उपलब्ध होते हैं, उनके द्वारा ग्राह्य होते हैं अर्थात् श्वासोच्छवास कर्म का कार्य इन्द्रियों के द्वारा ग्राह्य होते हैं, श्वासोच्छवास पर्याप्ति
इन्द्रियों के गम्य नहीं है, यह इन दोनों में अन्तर है। 35) अपर्याप्ति नामकर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव आहारादि छहों पर्याप्तियों में से किसी भी पर्याप्ति को पूर्ण नहीं कर सकता, पर्याप्तियों को पूर्ण करने में असमर्थ होता है, वह अपर्याप्ति नामकर्म है। 36) स्थिर नामकर्म :- स्थिर भाव का निवर्तक स्थिर नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से दुष्कर उपवास आदि तप करने पर भी अंग-उपांग की स्थिरता रहती है। अर्थात् अंग उपांग स्थिर बने रहते है, कृश नहीं होते है, वह स्थिर नामकर्म हैं। 37) अस्थिर नामकर्म :- स्थिर नामकर्म से विपरीत फलदायक अस्थिर नामकर्म है अर्थात् जिस कर्म के उदय से एक आदि थोड़े से उपवास करने पर या साधारण शीत उष्ण आदि से ही शरीर में अस्थिरता आ जाती है. या शरीर के अंगोपांग कृश हो जाते हैं, वह अस्थिर नामकर्म हैं। 38) आदेय नामकर्म :- जिस कर्म के उदय से दृष्ट और इष्ट प्रभा से युक्त शरीर की प्राप्ति होती है, वह आदेय नामकर्म है। 39) अनादेय नामकर्म :- जिसके उदय से निष्प्रभ शरीर प्राप्त होता है, वह अनादेय नामकर्म है। प्रश्न:- तैजस नाम का सूक्ष्म शरीर है, उसके निमित्त से शरीर में प्रभा होती
है, आदेय नामकर्म के निमित्त से नहीं ? उत्तर:- सूक्ष्म तैजस शरीर निमित्तक सर्व संसारी जीवों के होने वाली साधारण
कान्ति आदेय नहीं है, यदि सूक्ष्म तैजस शरीर के निमित्त से होने वाली
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