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शरीर कहते है । एक आत्मा के प्रति प्रत्येक है " प्रत्येक शरीर" प्रत्येक शरीर । शरीर नामकर्म के उदय से रचित शरीर जिस कर्म के उदय से एक ही आत्मा के उपभोग्य हो अर्थात् जिसका स्वामी एक ही जीव हो, वह प्रत्येक शरीर नामकर्म है।
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( 23 ) साधारण शरीर नामकर्म:- जिसके उदय से एक ही शरीर बहुत आत्माओं के उपभोग का कारण होता है, वा एक ही शरीर के बहुत से जीव स्वामी होते हैं वह साधारण शरीर नामकर्म है।
प्रश्न:- साधारण नामकर्म के उदय से जीव कैसा होता है ?
उत्तर:- साधारण जीवों के साधारण आहार आदि (आहार, शरीर, इन्द्रियादि) चार प्राप्तियाँ होती हैं और उनका जन्म-मरण श्वासोच्छवास, अनुग्रह और उपघात आदि सभी होते हैं। जब एक जीव के आहार, शरीर, इन्द्रिय और श्वासोच्छवास पर्याप्ति होती है, उस समय उसके साथ अनन्तान्त जीवों की आहारादि पर्याप्तियों को निवृत्ति हो जाती है । जब एक जीव जन्मता है जो उसके साथ अनन्तानन्त जीवों का जन्म होता है। जब एक जीव का मरण होता है। तब उसके साथ अनन्तानन्त जीवों का मरण होता है। जिस समय एक जीव श्वास ग्रहण करता है या छोड़ता है, उसी समय अनन्तान्त प्राणी श्वासोच्छ्वास ग्रहण करते हैं और छोड़ते हैं। जब एक जीव आहारादि का अनुग्रह करता है, आहार ग्रहण करता है तो उस समय एक साथ अनन्तानन्त जीव आहारादि ग्रहण करते हैं, जिस समय एक जीव का अग्नि विषादि के द्वारा उपघात होता है उसी समय अनन्तान्त जीवों का उपघात होता है ।
( 24 ) त्रस नामकर्म :- जिस कर्म के उदय से जीव को दो इन्द्रिय आदि जंगम (स) जीवों में जन्म लेता है, वह त्रस नामकर्म है।
(25) स्थावर नामकर्म:- जिस कर्म के उदय से यह प्राणी पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति रूप पंच स्थावर एकेन्द्रियों में जन्म लेता है, पाँच स्थावर काय में उत्पन्न होता है, वह स्थावर नामकर्म है।
( 26 ) सुभग नामकर्म:- रूपवान् हो वा कुरूप हो, जिस कर्म के उदय से अन्य प्राणी उससे प्रीति करते हैं, जो सबको प्यारा लगता है, वह सुभग नामकर्म है।
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