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Dis-satisfaction, langour .
3. अरति 4. शोक
Sorrow.
5.भय
Fear.
6. जुगुप्सा
Disgust. 7. स्त्री वेद
Faminine inclinations. 8. पुंवेद
Masculine inclinations. 9. नपुंसक वेद
Common inclinations. कषाय वेदनीय
Kayayavedaniya is of 16 kinds: 4. passions - Anger, pride, Deceit, Greed,
each of these is of 4 kinds: 1. अनन्तानुबन्धी Error-feeding or wrong belifassisting. 2. अप्रत्याख्यान Partial-vow-preventing 3.प्रत्याख्यान
Total-vow-preventing 4. सँज्वलन
Perfact - Right conduct preventing it is very
mild. Thus we get 16 i.e: 4 x 4 kinds: दर्शन मोहनीय, चारित्रमोहनीय, अकषायवेदनीय और कषायवेदनीय इनके क्रम से तीन, दो, नौ और सोलह भेद हैं। सम्यक्त्व मिथ्यात्व और तदुभय ये तीन दर्शनमोहनीय हैं. अकषायवेदनीय और कषाय वेदनीय' ये 2 चारित्र मोहनीय है. हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद ये नौ अकषाय वेदनीय हैं, तथा अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन ये प्रत्येक के क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से सोलह कषाय वेदनीय हैं। सम्यक्त्व, मिथ्यात्व, सम्यक्त्व मिथ्यात्व के भेद से दर्शन मोहनीय तीन प्रकार का है। कषाय और अकषाय के भेद से चारित्र मोहनीय के दो भेद है। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरूषवेद, नपुंसकवेद के भेद से अकषाय वेदनीय नव प्रकार की है। अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ; अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ
और संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ ये कषाय वेदनीय के 16 भेद हैं। दर्शन मोहनीय के तीन भेद हैं – सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यक्त्व मिथ्यात्व।
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