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________________ निद्रा दर्शनावरण कर्म के उदय से तम अवस्था और निद्रा निद्रा दर्शनावरण कर्म के उदय से महातम अवस्था होती है। ( 6 ) निद्रा - निद्रा - उपरि- उपरि निद्रा निद्रानिद्रा है। उस निद्रा के ऊपर पुनः पुनः निद्रा आना अर्थात् नींद के ऊपर नींद आना निद्रानिद्रा कहलाती है । (7) प्रचला जो आत्मा को प्रचलित करती है वह प्रचला है। जिस नींद से आत्मा में विशेष प्रचलन उत्पन्न होता है वो जो क्रिया आत्मा को प्रचालित करती है वह प्रचला निद्रा है। वह पुनः शोक, मद आदि के कारण से उत्पन्न होती है। यह इन्द्रिय व्यापार से उपरत - निवृत्त होकर बैठे ही बैठे के शरीर, नेत्र आदि में विकार क्रिया की सूचक है, अन्तः प्रीति का लवमात्र हेतु है। अर्थात् शोक, श्रम, मद आदि के कारण इन्द्रिय व्यापार से उपरत होकर बैठे-बैठे शरीर और नेत्र आदि में विकार उत्पन्न करने वाली प्रचला होती हैं। ( 8 ) प्रचला - प्रचला पुनः पुनः उसकी आहित वृत्ति प्रचलाप्रचला है। उस प्रचला के ऊपर पुनः पुनः प्रचला आना प्रचलाप्रचल, कही जाती हैं। - (9) स्त्यानगृद्धि - जिसके उदय से स्वप्न में वीर्य (शक्ति) विशेष का आविर्भाव होता है, स्त्यानगृद्धि है । वा जिसके सानिध्य से मानव अनेक रौद्र कर्म करता है, असम्भव कार्य भी कर डालता है, वह स्त्यानगृद्धि है। जिसके उदय से स्त्यान (स्वप्न) में दीप्ति हो, बहुत से रौद्र, क्रूर, असंभव कार्य करता हो, स्त्यानगृद्धि निद्रा है। वेदनीय Feeling is of 2 kinds 1. साता वेदनीय Pleasure-bearing 2. असाता वेदनीय Pain-bearing 486 सद्य और असद्वे ये दो वेदनीय है । सातावेदनीय जिसके उदय से देवादि गतियों में शारीरिक, मानसिक सुख की प्राप्ति होती है, वह साता वेदनीय कर्म है। जिस कर्म के उदय से अनेक प्रकार की जातियों से विशिष्ट देवादिगतियों में अनुगृहीत (इष्ट) सामग्री के सन्निधान Jain Education International वेदनीय के दो भेद सदसद्ये । (8) - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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