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________________ ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अंतराय से कर्म की आठ मूल प्रकृतियां (स्वभाव । पंच णव दोण्णि अट्टावींस चउरो कमेण तेणउदी। तेउत्तरं सयं वा दुगपणगं उत्तरा होंति ॥(22) ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के क्रम से पांच, नौ, दो, अट्टाईस, चार, तिरानवै अथवा एक सौ तीन, दो और पांच उत्तरभेद होते हैं। ज्ञनावरण के पाँच भेद मतिश्रुतावधिमनः पर्ययकेवलानाम्। (6) FIATCRUT Knowledge-obscuring is of kinds, according as it is: 1. मति Sensitive knowledge-obscuring. 2. श्रुत Scriptural knowledge-obscuring. 3. अवधि Visual knowledge-obscuring. 4. मनः पर्यय. mental knowledge-obscuring. 5. केवल ज्ञान Perfect knowledge-obscuring. मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनः पर्ययज्ञान और केवलज्ञान इनके आवरण करने वाले कर्म पाँच ज्ञानवरण हैं। प्रत्येक जीव स्वभावरूप से अनंतज्ञानी होते हुए भी ज्ञानावरणीय कर्म के कारण अल्पज्ञ हो रहा है। गुणदृष्टि से ज्ञानगुण एक होते हुए भी पर्याय दृष्टि से उसके अनेक भेद-प्रभेद हो जाते हैं। मुख्य 5 भेद हैं(1) मतिज्ञान (2) श्रुतज्ञान (3) अवधिज्ञान (4) मनः पर्ययज्ञान (5) केवलज्ञान। इन उत्तरभेदों के कारण ज्ञानावरणीय कर्म 5 रूप में परिणमन कर लेता है(1) मतिज्ञानावरणीय (2) श्रुतज्ञानावरणीय (3) अवधिज्ञानावरणीय (4) मनःपर्ययज्ञानावरणीय (5) केवलज्ञानावरणीय। (1) मतिज्ञानावरणीय - मतिज्ञान को ढकने वाले को मतिज्ञानावरणीय कर्म कहते हैं इस कर्म के उदय से मति ज्ञान प्रकट नहीं होता है। इस कर्म के क्षयोपशम से मतिज्ञान प्रगट होता है। 483 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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