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________________ The fruition of charity is different according to the difference in: 1. विधि Manner. 2. द्रव्य Thing given. 3. दाता Person who gives and 4. पात्र Person to whom it is given. विधि, देय, वस्तु, दाता और पात्र की विशेषता से उसकी विशेषता है। प्रतिग्रहादि क्रम को विधि विशेष कहते हैं। पात्र का प्रतिग्रह - पड़गाहना करना, उच्च स्थान देना, उसके पाद प्रक्षालन करना, पात्र की पूजा करना, नमस्कार करना, मन-वचन और काय की शुद्धि रखना और अन्न-जल का शुद्ध होना, इस नवधा भक्ति को विधिविशेष कहते हैं । (1) विधि विशेष - यहाँ विशेष गुणकृत है। अतः उसका सम्बन्ध प्रत्येक में अभिसम्बन्धित है। परस्पर की विशेषता को विशिष्ट अथवा विशेष कहते हैं। यह विशेषता गुणकृत होती है अतः विशेष का सम्बन्ध प्रत्येक में लगाना चाहिये । जैसे - विधि विशेष, द्रव्य विशेष, दातृ विशेष और पात्र विशेष । प्रतिग्रह आदि क्रियाओं में आदर विशेष ही विधिविशेष है; क्योंकि प्रतिग्रह आदि में आदर - अनादर कृत ही भेद होता है। दान में विशेषता विधिद्रव्यदातृपात्रविशेषात्तद्विशेषः । ( 39 ) 462 संग्रहमुच्चस्थानं वाक्कायमन: Jain Education International पादोदकमर्चनं प्रणामं च शुद्धि रेषणशुद्धिश्च विधिमाहुः उत्तम पात्रों का भले प्रकार समीचीन रीति से ग्रहण करना, इसी का नाम प्रतिग्रहण - पड़गाहन भी है उन्हें ऊँचा आसन देना उनके पाद प्रक्षालन करना उनकी पूजा करना और प्रणाम करना, वचनशुद्धि रखना, कायशुद्धि रखना, मन शुद्धि रखना और एषणाशुद्धि रखना अर्थात् आहार की शुद्धि रखना इसको दान देने की विधि कहते हैं। ( 2 ) द्रव्य विशेष - तप, स्वाध्याय की परिवृद्धि का कारण द्रव्य विशेष है। दिये जाने वाले अन्न आदि में ग्रहण करने वाले (साधुजनों) के तप, स्वाध्याय 1 || (168) पु. सि. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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