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करना परव्यपदेश है। (4) मात्सर्य - अतिथि को आहार देते समय अनादर भाव रखना मात्सर्य है। आहार देते समय आदर भाव के बिना देना मात्सर्य कहलाता है। (5) कालातिक्रम - अकाल में आहार देना कालातिक्रम है। अनगारों के अयोग्यकाल में आहार देना वा साधुओं के भिक्षाकाल को टाल देना कालातिक्रम कहा जाता है। ये अतिथिसंविभागवत के पाँच अतिचार कहे हैं।
सल्लेखना के अतिचार जीवितमरणाशंसामित्रानुरागसुखानुबन्धनिदानानि। (37)
The partial Transgression of Hortacat peaceful death are: 1. जीविताशंसा
Desire to prolong one's life. 2. मरणाशंसा
Desire to die soon. 3. मित्रानुराग
Attachment to friends 4. सुखानुबन्ध
Repeated rememberance of past
enjoyments. 5. निदान
Desire of enjoyments in the next
world. जीविताशंसा, मरणाशंसा, मित्रानुराग, सुखानुबन्ध, और निदान ये सल्लेखना के पाँच अतिचार हैं। (1) जीविताशंसा - आकांक्षा को आशंसा कहते हैं। आकांक्षण, अभिलाषा और आशंसा ये एकार्थवाची हैं। जीवन की आकांक्षा करना जीविताशंसा है और मरण की अभिलाषा करना मरणाशंसा है। अवश्य नष्ट होने वाले शरीर के अवस्थान में आदर जीविताशंसा है, यह शरीर अवश्य त्यागने योग्य है, जल के बुलबुले के समान अनित्य है। ऐसे इस शरीर की स्थिति किस प्रकार स्थिर रखी जाए? कैसे यह बहुत काल तक टिका रहे इत्यादि रूप से शरीर के ठहरने की अभिलाषा जीविताशंसा है, ऐसा जानना चाहिए। (2) मरणाशंसा - जीवन के संक्लेश के कारण मरण के प्रति चित्त का अनुरोध मरणाशंसा है। रोगादि की तीव्र पीड़ा के कारण जीवन में क्लेश होने पर मरण के प्रति चित्त का प्रणिधान होना मरणाशंसा है। सल्लेखना धारण कर लेने
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