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“सामायिक' कहते हैं। अनुकूल परिस्थिति में हो या प्रतिकूल परिस्थिति हो, लाभ हो या हानि हो, निंदा हो या प्रशंसा हो, जीवन हो या मरण हो सत्कार हो या तिरस्कार हो समस्त परिस्थितियों में राग-द्वेष नहीं करना हर्ष-विषाद नहीं होना हीनभाव या अहंवृत्ति को धारण नहीं करना ही सामायिक है। पूर्वोचार्यों ने कहा भी है
जीविद मरणे लाभालाभे संजोयविप्पओगेय। बंधुरिसुहदुक्खादिषु समदा सामाइयं णाम ॥(23)
मूलाचार जीवन, मरण में, लाभ-अलाभ में, संयोग-वियोग में, मित्र-शत्रु में तथा सुख-दुःख इत्यादि में समभाव होना सामायिक नाम का व्रत है।
दुःखे सुखे वैरिणि बन्धुवर्गे, योगे वियोगे भुवने वने वा। निराकृताशेषममत्वबुध्देः समं मनो मेऽस्तु सदापि नाथ ॥(3)॥
सामायिक पाठ में अमितगति आचार्य भगवान से कहते हैं कि है भगवन् ! दुःख में, सुख में, वैरियों में, बन्धुवर्ग में, संयोग में, वियोग में, भवन में, वन में सदा मेरी बुद्धि समस्त राग-द्वेष से रहित होकर समता में रहे। :: समता सर्वभूतेषु-संयमः शुभ भावना।
आर्त्तरौद्र परित्याग-स्तद्धि सामायिकं मतं॥(2) · संसार के सभी प्राणियों में समता भाव होना, संयम में शुभ भावना होना, आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान से रहित होना सामायिक है। 5. प्रोषधोपवास- आत्मा के समीप जाकर पाँचों इन्द्रियों का आत्मा में ठहर जाना 'उपवास' है। 'उप' शब्द का अर्थ समीप या निकय है और 'वस्' धातु ठहरने के अर्थ में है। पाँचों इन्द्रियों का शब्दादि अपने-अपने विषयों से निवृत्त होकर आत्मा के समीप पहुँच जाना ही उपवास है। अथवा अशन (खाद्य), पान (पेय), भक्ष्य (स्वाद्य) और लेह्य रूप चार-प्रकार के आहारों का त्याग करना उपवास है। प्रोषध (पर्व) में उपवास करना प्राषधोपवास कहलाता है। 'प्रोषध' शब्द पर्व का पर्यायवाची है अथवा संज्ञा में साधन कृत समास है अर्थात् प्रोषध का अर्थ एकासन है। उस प्रोषध के साथ किया हुआ उपवास
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