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व्रतों के भेद अगार्यनगारश्च । ( 19 )
(Vowers are of 2 kinds :) अगारी Agari, house-holders (laymen) and अनगार Anagara, house-less ( ascetics.)
उसके अगारी और अनागार ये दो भेद हैं। आश्रयार्थी जनों के द्वारा जो स्वीकार किया जाता है, वा उसमें पाया जाता है, वास किया जाता है, वह अगार - घर है। अगार, वेश्म, गृह ये सब एकार्थवाची हैं, अगार जिसके है, वह अगारी कहलाता है। जिसके अगार नहीं है, वह अनगार कहलाता है।
यहाँ चारित्र मोह के उदय से घर के प्रति अनिवृत्त परिणामरूप भावागार विविक्षित है । अत: भावागार ( जिसके चारित्र मोहनीय का उदय है वह) व्यक्ति किसी कारणवश घर को छोड़कर वन में रहता है तो भी वह अगारी है और चारित्रमोह के उदय के अभाव से निर्ग्रन्थ मुनि किसी द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के कारणवश शून्यागार, जिनमंदिर आदि में रहता है तो भी अनगार है अर्थात् विषय - तृष्णाओं से निवृत्त मुनि यदि शून्य घर, मन्दिर आदि में रहता है तो भी वह अनगारी है। अथवा राजा की तरह व्रती कहलाता है। जैसे बत्तीस हजार देशों का अधिपतिं चक्रवर्ती राजा कहलाता हैं। वैसे एक देश का स्वामी वा चक्रवर्ती आधे देश का स्वामी त्रिखण्डाधिपति क्या राजा नहीं कहलाता ? अपितु, एकदेशपति वा आधे देश का पति भी राजा कहलाता ही है। उसी प्रकार अठारह हजार शील और चौरासी लाख उत्तरगुणों को धारण करने वाला जैसे पूर्ण व्रत है वैसे अणुव्रतधारक संयतासंयत व्रती नहीं है, फिर भी अणुव्रतधारी भी व्रती कहलाता ही है ।
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अगारी का लक्षण अणुव्रतोऽगारी । ( 20 )
(One whose five ) vows (are ) partial (is) a house-holder.
अणुव्रतों का धारी अगारी है।
'अणु' शब्द अल्पवाची है। जिसके व्रत अणु अर्थात् अल्प हैं वह अणुव्रत वाला अगारी कहा जाता है। अगारी के पूरे हिंसादि दोषों का त्याग सम्भव
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