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________________ चूँकि इन सभी वचनों में प्रमाद सहित योग ही एक हेतु कहने में आया है इसलिये असत्य वचन में भी हिंसा निश्चितरूप से आती है । प्रमादसहित योग हिंसाका कारण हेतौ प्रमत्तयोगे निर्दिष्टे सकलवितथवचनानाम् । हेयानुष्ठानादेरनुवदनं भवति समस्त झूठ वचनों का प्रमाद सहित योग हेतु निर्दिष्ट करने में आया होने से हेय-उपादेय आदि अनुष्ठानोंका कहना झूठ नहीं है। इसके त्याग का प्रकार भोगोपभोगसाधनमात्रं सावद्यमक्षमा मोक्तुम् । ये तेपि शेषमनृतं समस्तमपि नित्यमेव मुञ्चन्तु ॥ ( 101 ) जो जीव भोग-उपभोग के साधन मात्र सावद्यवचन छोड़ने में असमर्थ हैं वे भी बाकी सभी असत्य भाषण का निरन्तर त्याग करें । नासत्यम् || (100) स्तेय - चोरी का लक्षण अदत्तादानं स्तेयम् । ( 15 ) Theft (is) to take anything which is not given, (through Pramattayoga). बिना दी हुई वस्तु का लेना स्तेय है। आदान शब्द का अर्थ ग्रहण है। बिना दी हुई वस्तु का लेना अदत्तादान है और यही स्तेय - चोरी कहलाता है। सूत्र में जो 'अदत्त' पद का ग्रहण किया है उससे ज्ञात होता है कि जहाँ देना लेना सम्भव है वहीं स्तेय का व्यवहार होता है। Jain Education International शंका- स्तेय का उक्त अर्थ करने पर भी भिक्षु के ग्राम, नगरादिक में भ्रमण करते समय गली, कूचा, दरवाजा आदि में प्रवेश करने पर बिना दी हुई वस्तु का ग्रहण प्राप्त होता है ? समाधान- यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि वे गली, कूचा और दरवाजा आदि • सबके लिए खुले हैं। यह भिक्षु जिनमें किवाड़ आदि लगे हैं उन दरवाजा आदि में प्रवेश नहीं करता, क्योंकि वे सब के लिए खुले नहीं हैं। अथवा, For Personal & Private Use Only 425 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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