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42 दिन के भोजन से तैयार होता है। इससे सुजाक, मस्तिष्क दुर्बलता, शारीरिक शक्ति का ह्रास, स्मरण शक्ति का ह्रास, रोग प्रतिरोधक शक्ति की कमी आदि अनेक विपत्तियाँ आ घेरती है। वर्तमान में जो एड्स रोग ने विश्व में आंतक फैलाया है उस महा रोग की उत्पत्ति एवं वृद्धि अब्रह्मचर्य से ही हुई है। अब्रह्मचर्य से ही जन संख्या की वृद्धि होती है और इसकी वृद्धि से खाद्याभाव, आवास का अभाव, प्रदूषण में वृद्धि, भूखमरी, समूचित शिक्षा-दीक्षा का अभाव आदि अनेक समस्यायें उत्पन्न होती है। अब्रह्मचारी- अति कामुक व्यक्ति हिताहित विवेक से रहित होकर परस्त्री गमन, वेश्या गमन आदि कार्य भी करता है। जिससे उसे अपमान, दण्ड, सामाजिक अप्रतिष्ठा आदि अनेक समस्यायों आ घेरती है। कभी-कभी कुशील सेवन से प्राणदण्ड तक मिलता है। ..
इष्टोपदेश में पूज्यपाद स्वामी ने काम भोग से उत्पन्न दु:ख का वर्णन निम्न प्रकार किया है
आरम्भे तापकान्प्राप्तावऽतृप्तिप्रतिपादकान्।
अन्ते सुदुस्त्यजान् कामान्, काम कः सेवते सुधीः ।।(17) आरम्भ में सन्ताप के कारण और प्राप्त होने पर अतृप्ति के करने वाले तथा अंत में जो बडी मुश्किल से भी छोड़े नहीं जा सकते, ऐसे भोगोपभोग को कौन विद्वान-समझदार-ज्यादती व आसक्ति के साथ सेवन करेगा?
किमपीदं विषयमयं, विषमतिविषमं पुमानयं येन।
प्रसभमनुभूयं . मनोभवे-भवे नैव-चेतयते॥ अहो! यह विषयमयी विष कैसा गजब का विष है कि जिसे जर्बदस्ती खाकर यह मनुष्य, भव भव में नहीं चेत पाता है।
_ "जैन धर्म में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील को जैसे पाप माना है वैसे परिग्रह को भी पाप माना है। पाप का अर्थ है-पतन। जिसके कारण जीव पतित होता है उसे पाप कहते हैं। सचित्त एवं अचित्त परिग्रह के कारण जीव अनेक कष्टों को उठाता है तथा अनेक पापों को करता है। परिग्रह संचय के कारण ही समाज में धनी-गरीब, शोषक, शोषित, मालिक, मजदूर आदि विपरीत विषम परिस्थिति से युक्त व्यक्ति का निर्माण होता है।
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