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दुःख का कारण है इसलिए दुःख के कारण या दुःख के कारण के कारण जो हिंसादिक है उनमें दुःख का उपचार है।
जिस समय जीव हिंसादि पाप करता है उस समय में उसका भाव दुषित होने के कारण जो कर्मास्राव होता है वह कर्मास्रव पाप प्रकृति रूप में परिणमन कर लेता है। यह पाप ही उस पापी को अनेक प्रकार का दुःख देता है। पाप प्रवृत्ति के समय जो दूषित भाव होता है उससे मानसिक- तनाव, मानसिक उद्वेग, चिंता, भय आदि उत्पन्न होते हैं जिसके कारण उसे तत्काल ही मानसिक कष्ट एवं यातनायें मिलती है जिससे विभिन्न मानसिक रोग के साथ-साथ शारीरिक रोग होता है। जैसे-ब्लेड प्रेशर बढ़ना, सिर दर्द, कैन्सर, टी.वी., हृदय गति रुकना (हार्ट फेल), उन्माद, पागलपन आदि रोग होते हैं। इतना ही नहीं इस लोक में ही अपमान, प्रताडना, जेल जाना, सामाजिक प्रतिष्ठा का ह्रास, अविश्वास, शत्रुता, कलह यहाँ तक की प्राण दण्ड आदि कष्ट मिलते है। जो हिंसा करता है उसके फलस्वरूप इस जन्म में उसकी हिंसा हो सकती है पर जन्म में अकाल मरण, रोग आदि यातनाएँ सहन करनी पड़ती हैं।
झूठ बोलने से दूसरों का विश्वास झूठ बोलने वाले पर से उठ जाता है जिव्हा छेय आदि दंड मिलता है। केवल एक बार झूठ बोलने पर राजा वसु का स्फटिक मय सिंहासन फट गया। वह नीचे गिरा तथा पृथ्वी भी फट गई और वह पृथ्वी पर समावेश होकर नरक में गया। मिथ्या बोलने वाला परभव में गूंगा (मूक) होता है, मुंह में घाव होता है और मुंह में से बदबू आती है।
चोरी करने वाला इस जन्म में अनेक शारीरिक दण्ड को पाता है। उस पर. कोई विश्वास नहीं करता है। राजा सरकारादि उसके धन अपहरण करके जेल में दण्ड देते है, यहाँ तक कभी-कभी प्राणदण्ड मिलता है। परभव में भिखारी बनता है एवं उसका भी धन अपहरण अन्य के द्वारा किया जाता
. मैथुन सेवन से शारीरिक, मानसिक एवं आध्यत्मिक कष्ट होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार एक बार संभोग से जो वीर्य क्षय होता है उतना वीर्य
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