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अध्याय 7 शुभास्रव का वर्णन Influx of puniya (Merit)
व्रत का लक्षण हिसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम्। (1) व्रत Vow is to be free from; हिंसा Injury; अनृत Falsehood; Frite theft; अब्रह्म unchastity; and परिग्रह worldly attachment; (or worldly objects) हिंसा, असत्य, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह से निवृत्त होना व्रत है।
आस्रव पदार्थ के व्याख्यान की प्रतिज्ञा करके आस्रव के एक सौ आठ भेदों की संख्या का अनेक रीतियों से विचार किया है अर्थात् आम्रव के भेद कहे हैं। पुण्यरूप और पापरूप कषायों का निमित्त होने से वह आम्रव दो प्रकार का है-एक पुण्यासव, दूसरा पापासव। उन पुण्य एवं पाप आम्रवों में से अब पुण्यास्रव का वर्णन करते हैं। पुण्यासव प्रधान है, क्योंकि मोक्ष पुण्यासवपूर्वक ही होता है अर्थात् आम्रव के विचार में कहा गया पुण्यासव मोक्ष में परम्परा कारण होने से इस समय व्याख्येय है।
हिंसादि का लक्षण-आगे इसी अध्याय के 13,14,15,16,17 सूत्र में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह का लक्षण कहेंगे ; उससे इनका लक्षण जानना चाहिये।
विरमण का नाम विरति है। चारित्रमोहनीय कर्म के उपशम, क्षय और क्षयोपशम के निमित्त से औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक चारित्र की प्रकटता होने से जो विरक्ति होती है, उसे विरति कहते हैं।
अभिसन्धिकृत नियम व्रत कहलाता है। बुद्धिपूर्वक परिप्पाम वा बुद्धिपूर्वक
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