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पर प्रकट करने की वृत्ति होना उद्भावन है। यहाँ भी क्रम से सम्बन्ध होता है। यथा-सद्गुणोंच्छादन और असद्गुणोद्भावना इन सब को नीच गोत्र के आस्रव के कारण जानना चाहिए।
उच्च गोत्र कर्म का आम्रव ___ तद्विपर्ययो नीचैर्वृत्त्यनुत्सेको चोत्तरस्य।(26) The inflow of the next, i,e, JTapital hight-family-determining karma is caused by the opposite of the above, i,c, by : (1) पर प्रशंसा - Prasing others; (2) आत्मनिन्दा – Denouncing one's self; (3) HGYUGEOTGH – Proclaiming the good-qualities of others. (4) असद्गुणोद्भावन – Not proclaiming one's own; (5) नीचैर्वृत्ति - An attitude of humility towards one's better; (6) अनुत्सेक - Not being proud of one's own achievements or altainments. उनका विपर्यय अर्थात् पर प्रशंसा, आत्मनिन्दा, सद्गुणों का उद्भावन
और असद्गुणों का उच्छादन तथा नम्रवृत्ति और अनुत्सेक ये उच्च गोत्र के आस्रव हैं।
जो गुणों में उत्कृष्ट हैं उनके प्रति विनय से नम्र रहना नीचैर्वृत्ति है। ज्ञानादि की अपेक्षा श्रेष्ठ होते हुए भी उसका मद न करना अर्थात् अहंकार रहित होना अनुत्सेक है। ये उत्तर अर्थात् उच्च गोत्र के आस्रव के कारण हैं।
तीर्थेश गुरू सङ्घानामुच्चैः पदमयात्मनाम्। प्रत्यहं व नुतिं भक्तिं तन्वन्ति गुण कीर्तनम् ।। [196] स्वस्य निन्दां च येऽत्रार्या गुणिदोषोपगूहनम्।
तेऽपुत्र त्रिजगद्वन्द्यं गोत्रंश्रयन्ति गोत्रतः॥ [197] जो आर्यजन तीर्थंकर, सुगुरू, जिनसंघ और उच्चपदमयी पंच परमेष्ठियों की प्रतिदिन पूजा-भक्ति करते हैं, उनके गुणों का कीर्तन करते हैं उन्हें नमस्कार करते हैं, अपने दोषों की निन्दा करते हैं और दूसरे गुणी जनों के दोषों का
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