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शीलरहित होना, व्रतरहित होना, मिथ्यात्व धारण करना, दूसरों को ठगना, मिथ्यात्व से सहित अधर्मोंका उपदेश देना, कृत्रिम अगुरु, कपूर और केशर का बनाना, झूठे नापतौल के बाँट तराजू तथा कूट आदि का चलाना, नकली सुवर्ण तथा मोती आदि का बनाना, वर्ण, गन्ध रस आदि को बदलकर अन्यरूप देना, छाछ, दूध तथा घी आदि में अन्य पदार्थों का मिलाना, वाणी तथा क्रिया द्वारा दूसरों की विषय अभिलाषा को उत्पन्न करना, कापोत और नील लेश्या से युक्त होना, तीव्र आर्तध्यान करना और मायाचार करना ये सब तिर्यंच. आयु के आम्रव के हेतु जानना चाहिये।
मनुष्य आयु का आम्रव
अल्पारम्भपरिग्रहत्वं मानुषस्य। (17) The inflow of Higher human-age-karma is caused by slight wordly activity and by attachment to a few wordly objects of by slight attachment. अल्प आरम्भ और अल्प परिग्रह वाले का भाव मनुष्यायु का आम्रव
नरक आयु के आस्रव के कारणों से विपरीत भाव मनुष्य आम्रव के कारण हैं। नरक आयु के आम्रवों के कारण बहु आरम्भादि का वर्णन कर दिया है। उससे विपरीत अल्पारम्भ, अल्परिग्रहत्व, संक्षेप में मनुष्य आयु के
आम्रव के कारण हैं। विस्तार से मिथ्यादर्शन सहित बुद्धि, विनीत स्वभाव, प्रकृतिभद्रता, मार्दव-आर्जव परिणाम, अच्छे आचरणों में सुख मानना, रेत की रेखा के समान क्रोधादि, सरल व्यवहार, अल्पारम्भ, अल्प परिग्रह, संतोष में रति, हिंसा से विरक्ति, दुष्ट कार्यों से निवृत्ति, स्वागत तत्परता, कम बोलना, प्रकृति मधुरता, सब के साथ उपकार-बुद्धि रखना, औदासीन्यवृत्ति, ईर्षारहित परिणाम, अल्प संक्लेशता, गुरु, देवता, अतिथि की पूजा-सत्कार में रुचि, दानशीलता, कापोत, पीत लेश्या के परिणाम, मरण समय में धर्मध्यान परिणति आदि लक्षण वाले परिणाम मनुष्यायु के आम्रव के कारण हैं।
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