SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयम है। सराग (राग सहित प्राणी) का संयम सरागसंयम है अथवा सराग (राग के साथ) संयम राग संयम है। आदि शब्द से संयमासयम, अकामनिर्जरा, बालतप आदि का भी ग्रहण है। संयमासंयम, अकामनिर्जरा और बालतप का भी आदि शब्द से ग्रहण किया गया है। एकदेश विरति को संयमासंयम कहते हैं अर्थात् 'जो त्रस हिंसा का त्याग करने से संयम और स्थावर हिंसा का त्याग न करने से असंयम तथा दोनों संयम और असंयम एक साथ होने से संयमासंयम कहलाता है। विषयों के अनर्थ की निवृत्ति को आत्म-अभिप्राय से नहीं करते हुए परतन्त्रता के कारण भोगोपभोग का निरोध होने पर शांतिपूर्वक सहन करना अकामनिर्जरा है। यथार्थ प्रतिपत्ति (ज्ञान) अभाव होने से अज्ञानी मिथ्यादृष्टि बाल कहलाते हैं। उन अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों का अग्नि में प्रवेश, पंचाग्नि तप आदि बालतप है। योग:- निरवद्य क्रियाविशेष के अनुष्ठान को योग कहते हैं। योग अर्थात् पूर्ण उपयोग से जुट जाना। योग, समाधि, सम्यक् प्रणिधान ये सब एकार्थवाची है। दूषण की निवृत्ति के लिए योग शब्द का ग्रहण किया गया है। अथवा, भूतव्रत्यनुकम्पा, दान और सरागसंयम आदि का योग भूतव्रप्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोग कहलाता है। शान्तिः- धर्मप्रणिधान (धार्मिक भावनाओं) से क्रोधादि की निवृत्ति करना शान्ति है। क्रोधादिकषायों को शुभ परिणाम-भावनापूर्वक निवृत्ति करना क्षान्ति कहलाती है। अर्थात् क्रोध के कारण मिलने पर भी सहनशील रहना, उत्तेजित नहीं होना, क्षान्ति है। शौच- लोग के प्रकारों के उपरम को शौच कहते हैं। लोभ के अनेक भेद हैं उनका उपरम करना, त्याग करना शुचि कहलाता है और शुचि का भाव शौच कहलाता है। स्वद्रव्य का ममत्व नहीं छोड़ना, दूसरे के द्रव्य का अपहरण करना, धरोहर को हड़पना आदि लोभ के प्रकार हैं। यहाँ पर इति शब्द प्रकारार्थक है। इस प्रकार भूतव्रत्यनुकम्पा आदि साता वेदनीय के आस्रव के कारण हैं। तत्त्वार्थसार में कहा भी गया हैं: 377 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy