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________________ 222 35. भगुज्यों की उत्कृष्ट और उपन्य स्थिति 36. तिर्यंचों की स्थिति अध्याय 4. 224 226 227 227 228 230 230 231 232 233 233 234 236 1. देवों का वर्णन 2. भवनत्रिक देवों में लेश्या का वर्णन 3. चार निकायों के प्रभेद 4. चार प्रकार के देवों का सामान्य भेद । 5. व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में इंद्र आदि भेदों की विशेषता 6. देवों में इन्द्रों की व्यवस्था 7. देवों में स्त्री सुख का वर्णन 8. शेष स्वों के देवों के विषय 9. सोलह स्वर्गों से ऊपर के देवों के सुख 10. भवनवासियों के दस भेद 11. व्यन्तर देवों के आठ भेद , 12. ज्योतिष्क देवों के पाँच भेद 13. ज्योतिष्क देवों का विशेष वर्णन 14. काल का व्यवहार होने का कारण 15. मनुष्य लोक के बाहर ज्योतिष देवों की स्थिति 16. वैमानिक देवों का वर्णन 17. वैमानिक देवों के भेद । 18. कल्पों का स्थितिक्रम 19. वैमानिक देवों के रहने का स्थान 20. वैमानिक देवों में उत्तरोत्तर अधिकता 21. वैमानिक देवों में उत्तरोत्तर हीनता 22. वैमानिक देवों में लेश्या का वर्णन 23. कल्प संज्ञा कहाँ तक है? . 24. लौकान्तिक देव 243 '247 248 249 249 250 250 252 253 254 254 255 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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