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किया है(1) भाव आस्रव
आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विण्णेओ। भावासवो जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि॥(29)
(पृ.69) जिस परिणाम से आत्मा के कर्म का आस्रव होता है उसको श्री जिनेन्द्र द्वारा कहा हुआ भावानव जानना चाहिए। और भावास्रव से भिन्न ज्ञानावरणादिरूप कर्मों का जो आस्रव है सो द्रव्यास्रव है। (2) द्रव्य आम्रव
णाणावरणादीणं जोग्गं जं पुग्गलं समासवदि। दव्वासवो स णेओ अणेयभेओ जिणक्खादो॥(31)
(पृ.71) ज्ञानावरण आदि आठ कर्मों के योग्य जो पुद्गल आता है उसको द्रव्यासव जानना चाहिए। वह अनेक भेदों सहित है, ऐसा श्री जिनेन्द्र ने कहा है।
योग के निमित्त से आस्रव का भेद
शुभः पुण्यास्याशुभ: पापस्य। (3) Asrava is of 2 kinds: शुभ or good which is the inlet of virtue or meritorious karms 37TH or bad which is the inlet of vice or demeritorious karmas. शुभयोग पुण्य का और अशुभयोग पाप का आस्रव है। शुभयोग पुण्य और अशुभ योग पापास्त्रव का कारण है। हिंसा, असत्य भाषण, वध आदि की चिन्ता रूप अपध्यान अशुभ योग है। हिंसा, दूसरे की बिना दी हुई वस्तु का ग्रहण (चोरी), मैथुन-प्रयोग आदि अशुभ काययोग है। असत्य भाषण, कठोर मर्मभेदी वचन बोलना आदि अशुभ वचन योग है। हिंसक परिणाम, ईर्ष्या, असूया आदि रूप मानसिक परिणाम अशुभ मनोयोग है। ___अशुभ योग से भिन्न अनन्त विकल्प वाला शुभ योग है। जैसे- अहिंसा,
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