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द्वारा पुद्गल आत्मा का उपकार करता है।
इन सब का प्रतिघात देखा जाता है अतः ये सब मूर्तिक हैं। उन प्राणापान और वाङ् (वचन), मन, श्वासोच्छ्वास का प्रतिघात आदि होने से इन को मूर्तिमान् (पौद्गलिक) समझना चाहिए। जैसे- भय के कारणों से तथा वज्रपात. आदि के शब्दों के द्वारा मन का प्रतिघात और मदिरा आदि के द्वारा मन का अभिभव देखा जाता है। हाथ से मुख और नाक को बन्द कर देने पर श्वासोच्छ्वास का प्रतिघात और कण्ठ में कफ आदि के आजाने से श्वासोच्छ्वास का अभिभव देखा जाता है। अतः मन और श्वासोच्छ्वास पौद्गलिक हैं क्योंकि मूर्तिक पदार्थों के द्वारा अमूर्त्तिक पदार्थ के अभिघात और अभिभव ( रूकावट ) नहीं हो सकते।
श्वासोच्छ्वास रूपी कार्य से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है । इनके द्वारा आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि होती है; क्योंकि प्राणापानादि कर्म आत्मा कार्य हैं अतः आत्मा रूपी कारण के बिना श्वासोच्छ्वास रूपी कार्य नहीं हो सकता, जैसे किसी यन्त्रमूर्ति की चेष्टाएँ उसके प्रयोक्ता का अस्ति बताती प्रकार प्राणापानादि क्रियाएँ क्रियावान् आत्मा की सिद्धि करती हैं।
सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च । ( 20 )
जीवानां सुख-दुःख - जीवित-मरण - उपग्रहाश्च पुद्गलानामुपकारो
भवति ।
Soul experiences pain, pleasure, life and death through the agency of matter.
सुख, दुख, जीवन और मरण ये भी पुद्गलों के उपकार हैं।
19 नम्बर सूत्र में बताया गया कि, परिमाण विशेष से गृहीत पुद्गल जैसे- शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छ्वास चतुष्टय क्रम से गमन, व्यवहरण, चिन्तवन और श्वासोच्छ्वास रूप से जीव का उपकार करते है वैसे सुख आदि भी पुद्गलकृत उपकार हैं उसको बताने के लिए इस सूत्र में कहते हैं कि सुख, दुःख, जीवन, मरण भी पुद्गल कृत उपकार है।
(1) सुख :- बाह्य कारणों के कारण और साता वेदनीय के उदय से
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