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________________ पोग्गलदव्वम्हि अणू, संखेज्जादी हवंति चलिदा हु। चरिममहक्खंधम्मि य, चलाचला होति हु पदेसा॥(593) पुद्गल द्रव्य में परमाणु तथा संख्यात, असंख्यात आदि अणु के जितने स्कन्ध हैं वे सभी चल हैं, किन्तु एक अन्तिम महास्कन्ध चलाचल है, क्योंकि उसमें कोई भाग चल है और कोई भाग अचल है। द्रव्यों के स्वप्रदेशों की गणना असंख्येया: प्रदेशा धर्माधर्मेक जीवानाम्। (8) धर्म-अधर्म-एकजीवानामसंख्येया: प्रदेशा भवन्ति। There are countless space-points in the medium of motion, medium of rest and in each individual soul. धर्म अधर्म और एक जीव के अंसख्यात प्रदेश हैं। धर्म, अधर्म और जीव स्वतन्त्र-स्वतन्त्र रूप से एक-एक अखण्ड द्रव्य होते हुए भी उनके प्रदेश असंख्यात-असंख्यात हैं। धर्म द्रव्य के असंख्यात, अधर्म द्रव्य के असंख्यात और एक जीव के भी असंख्यात प्रदेश हैं। ____ संख्या को जो गणना अतिक्रान्त कर लिया है उसे असंख्यात कहते हैं अर्थात् जो गिनती की सीमा को पार कर गये हैं अथवा जो किसी सामान्य असर्वज्ञ के द्वारा गिने नहीं जाते हैं उनको असंख्यात कहते हैं। यहाँ सर्वप्रथम जान लेना चाहिए प्रदेश किसे कहते हैं क्योंकि यहाँ प्रदेश गणना के लिए इकाई है। प्रदेश की परिभाषा निम्न प्रकार की है “जावदियं आयासं अविभागी पुग्गलाणुवट्ठध्दं तं खु पदेसं" जितना आकाश अविभागी पुद्गल परमाणु से रोका जाता है उसको प्रदेश कहते हैं। राजवार्तिक में कहा है "प्रदिश्यन्ते प्रतिपाद्यन्त इति प्रदेशाः।" । जो क्षेत्र के परिमाण को बताते हैं उसे प्रदेश कहते हैं। "द्रव्यपरमाणुः स यावति क्षेत्रेऽवतिष्ठते स प्रदेश इति व्यवह्रियते"। 276 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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