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________________ आगासकालज़ीवा धम्माधम्मा य मुत्तिपरिहीणा । मुत्तं पुग्गलदव्वं जीवो खलु चेदणो तेसु ॥ (97) (पृ.253) स्पर्श, रस-गंध-वर्ण का सद्भाव जिसका स्वभाव है वह मूर्त है, स्पर्श-रस-गंध वर्ण का अभाव जिसका स्वभाव है वह अमूर्त है। चैतन्य का सद्भाव जिसका स्वभाव है वह चेतन है, चैतन्य का अभाव जिसका स्वभाव है वह अचेतन है। वहाँ, आकाश अमूर्त है, काल अमूर्त है, जीव स्वरूप से अमूर्त है, पर-रूप में प्रवेश द्वारा (मूर्त द्रव्य के संयोग की अपेक्षा से ) मूर्त भी है, धर्म अमूर्त है, अधर्म अमूर्त है, पुद्गल ही एक मूर्त है। आकाश अचेतन है, काल अचेतन है, धर्म अचेतन है, पुद्गल अचेतन है, जीव ही एक चेतन है। जे 'खलु इन्द्रियगेज्झा बिसया जीवेहिं होंति ते मुत्ता । संबदि अमुत्तं 9 इस लोक में जीवों द्वारा स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय और चक्षुरिन्द्रिय द्वारा उनके विषयभूत स्पर्श रस गंध वर्ण स्वभाव वाले पदार्थ ग्रहण होते हैं और श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा वही पदार्थ उसके (श्रोत्रेन्द्रिय) के विषय हेतु भूत शब्दाकार परिणमित हुए ग्रहण होते हैं। वे (पदार्थ), कदाचित् स्थूल स्कन्धपने को प्राप्त होते हुए, कदाचित् सूक्ष्मत्व को प्राप्त होते हुए और कदाचित् परमाणुपने को प्राप्त होते हुए, इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होते हों या न होते हों, इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होने की योग्यता का (सदैव ) सद्भाव होने से मूर्त कहलाते हैं। Jain Education International 11(99) स्पर्श -‍ -रस-गंध-वर्ण का अभाव जिसका स्वभाव है ऐसा शेष अन्य समस्त ` पदार्थ समूह, इन्द्रियों द्वारा ग्रहण होने की योग्यता के अभाव के कारण 'अमूर्त' कहलाता है। द्रव्यों के स्वभेद की गणना आ- आकाशदेकद्रव्याणि । ( 6 ) आ-आकाशात् एकद्रव्याणि भवन्ति । Dravyas enumerated there up to Akasa (i.e. Dharma, Adharma, and For Personal & Private Use Only 273 www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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