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3. अरूपी- 'अरूप' पद का ग्रहण द्रव्य के स्वतत्त्व का ज्ञान कराने के लिए है। 'अरूप' पद, रूप और स्पर्श, रस, गंधादि का निषेध करके धर्मादिक का जो ‘अमूर्तत्त्व' स्वभाव है, उसकी सूचना करता है। नहीं है रूप जिसके वह अरूप कहलाता है। रूप के निषेध से रूप के अविनाभावी रस, गन्ध, स्पर्शादि का भी निषेध जानना चाहिए। अरूपी का अर्थ अमूर्तिक है अर्थात् धर्म, अधर्म, आकाश, काल और जीव अमूर्तिक हैं।
पुद्गल द्रव्य अरूपी नहीं है रूपिणः पुद्गलाः। (5)
Matter is Rupi, in other words, it has got touch, taste, smell and colour.
पुद्गल रूपी है।
चतुर्थ नम्बर सूत्र में कहा गया है कि, उक्त द्रव्य नित्य, अवस्थित एवं अरूपी है। परन्तु प्रश्न उपस्थित होता है क्या पुद्गल अरूपी है ? इसके उत्तर में कहा गया है कि पुद्गल अरूपी द्रव्य नहीं किन्तु रूपी है। यहाँ रूपी शब्द से केवल रूप का ग्रहण नहीं किया गया है किन्तु रूप के अविनाभावी स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, तथा गोल, त्रिकोण, चौकोर, लम्बा, चौडा, आदि आकार को भी ग्रहण करना चाहिए। _ 'पुद्गला': यह बहुवचन पुद्गल के विभिन्न भेद प्रभेदों को सूचित करता है। अत: परमाणु और विभिन्न स्कन्धों का ग्रहण करना चाहिए। वर्तमान भौतिक विज्ञान एवं रासायनिक विज्ञान में जो कुछ वर्णन है वह सब पुद्गल से ही सम्बन्धित है। पुद्गल (Matter) भौतिक द्रव्य का वर्णन जितना वैज्ञानिक और व्यापक ढंग से जैन धर्म में पाया जाता है इतना किसी भारतीय और वैदेशिक दर्शन में नहीं पाया जाता है। तथापि इसका वर्णन भारतीय दार्शनिक कणाद तथा ग्रीक दार्शनिक डेमोक्रेटिस् आदि ने थोड़ा बहुत वर्णन किया है। आधुनिक वैज्ञानिक डाल्टन रदर फोर्ड, आदि ने इसका विशेष शोध-बोध किया है। कुन्द-कुन्द देव ने पंचास्तिकाय में पुद्गल का वर्णन निम्न प्रकार से किया है
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