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________________ "सागरपमे" यह द्वि वचन है अर्थात् दो साग, ग्रहण करना चाहिए। अधिक का अधिकार 12 वें स्वर्ग सहस्रार तक 3 12 वें स्वर्ग तक उस-उस स्वर्ग की उत्कृष्ट आयु से कुछ आयु अधिक होती है। साधारणत: सौधर्म ऐशान स्वर्ग में उत्कृष्ट आयु 2 सागर की है। परन्तु घातायुष्क सम्यक्दृष्टि के 2 सागर से कुछ अधिक अर्थात् आधा सागर आयु अधिक होती है। जब कोई मनुष्य या तिर्यंच सम्यग्दर्शन सहित शुभ परिणाम से दानादि पुण्य क्रियायें करके ऊपर के स्वर्ग की आयु को बांधता है पीछे संक्लेश परिणाम से युक्त हो जाता है तब ऊपर के स्वर्ग की आयु घट जाती है तथा निचले वर्ग में जन्म लेता है। ऐसे जीव की आयु उस स्वर्ग की सामान उत्कृष्ट आयु से कुछ अधिक होती है। जैसे कोई जीव सानत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग की उत्कृष्ट सात सागर की आयु बांधा पुनः संक्लेश परिणाम से मरकर सौधर्म या ऐशान स्वर्ग में जन्म लिया तब उसकी आयु उस स्वर्ग के देवों की उत्कृष्ट आयु 2 सागर से अतमुहूर्त कम आधा सागर अधिक होगी। क्रमशः आगे के स्वर्गों में आयु सानत्कुमार माहेन्द्रयोः सप्त। (30) In the.Sanatkumar mahendra (i.e. 3rd and 4th heavens, the maximum age is little over) 7 Sagaras. सानत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में सात सागर से कुछ अधिक उत्कृष्ट स्थिति है। . अधिकार से सागर और अधिक का ज्ञान हो जाता है। सागर और अधिक पद का अनुवर्तन पूर्व सूत्र से हो जाता है। इससे यह अर्थ होता है कि सानत्कुमार माहेन्द्र स्वर्ग के देवों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागर से कुछ अधिक है। ब्रह्मलोक से अच्युत पर्यंत स्थिति त्रिसप्तनवैकादशत्रयोदशपञ्चदशभिरधिकानि तु।(31) And 3,7,9,11,13 and 15 added to 17 Sagaras make up the maximum age of others. ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, युगल से लेकर प्रत्येक युगल में आरण अच्युत तक क्रम 259 www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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