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________________ में भी जिससे सम्यग्दर्शन प्राप्त हो सकता है ऐसी विशुद्धि नहीं पाई जाती। अतएव यह पर्याय अत्यन्त पाप बहुल है। सारांश यह है कि, जिसके होने पर ये भाव हुआ करते या पाये जाते है जीव की उस द्रव्य पर्याय को ही तिर्यगति कहते हैं। मनुष्यों की अपेक्षा यह निकृष्ट पर्याय है, ऐसा समझना चाहिए। भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयु का वर्णन स्थितिरसुरनागसुपर्णद्वीपशेषाणां सागरोपमत्रिपल्योपमार्द्धहीनमिता:(28) The (maximum) age of: असुर Asura, measures 1 Sagara सागर नागा Naga, measures - 3 palya पल्य सुपर्ण Suparna measures 1/2 less (i.e. 21/2) . 21/2 palya पल्य द्वीप Dvipa, measures 2 palya पल्य And of the other (6 classes 11/2 1/2 पल्य असुरकुमार, नागकुमार, सुपर्णकुमार, द्वीपकुमार और शेष भवनवासियों की उत्कृष्ट स्थिति क्रम से एक सागर, तीन पल्य, ढाई पल्य, दो पल्य और डेढ़ पल्य प्रमाण हैं। यहाँ ‘सागरोपम आदि शब्द के साथ असुर कुमार आदि शब्दों का क्रम से सम्बन्ध जान लेना चाहिए। यह उत्कृष्ट स्थिति है। वह उत्कृष्ट स्थिति इस प्रकार है- असुरों की स्थिति एक सागर है। नागकुमारों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य है। सुपर्णों की उत्कृष्ट स्थिति ढाई पल्य है। द्वीपों की उत्कृष्ट स्थिति दो पल्य है। और शेष छह कुमारों की उत्कृष्ट स्थिति डेढ़ पल्य है। वैमानिक देवों की उत्कृष्ट आयु सौधर्मेशानयोः सागरोपमेऽधिके। (29) In the Saudharma and Isana (i.e.1st and 2nd heavens, the maimum age is) a little over 2 Sagaras. सौधर्म और ऐशान कल्प में दो सागर से कुछ अधिक उत्कृष्ट स्थिति 258 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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