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विमान अवस्थित हैं जो कभी भी परिभ्रमण नहीं करते हैं। आचार्य उमास्वामी ने “बहिरवस्थिता': सूत्र में इसका प्रतिपादन किया है।
प्रातःकाल सूर्य पूर्व दिशा मे उदय होता है एवं सायंकाल में पश्चिम दिशा में अस्त होता है। रात्रि में भी अनेक ज्योतिष्क ध्रुव नक्षत्रों को छोड़कर जो सायंकाल में जिस स्थान में दिखाई देते हैं, मध्यरात्रि में एवं प्रात: काल में उनका स्थान पश्चिम दिशा की ओर होता है। इसी प्रकार पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर स्थान परिवर्तन का कारण क्या है ? इसका उत्तर यह है कि 'मेरू प्रदिक्षणा नित्यगतयो नृलोके' अर्थात् ज्योतिष्क देव मेरु की प्रदक्षिणा करते हुये नित्य भ्रमण करते हैं। एवं तत्कृत : काल विभाग : ' अर्थात् इनकी गति के अनुसार दिन-रात्रि आदि काल विभाग होता है । ( विश्व विज्ञान रहस्य ) (पृ.सं.166-167)
वैमानिक देवों का वर्णन वैमानिका: । ( 16 )
Now we go on to the heavenly beings. चौथे निकार्य के देव वैमानिक हैं।
जो विशेषत: अपने में रहनेवाले जीवों को पुण्यात्मा मानते हैं वे "विमान” है और जो उन विमानों में होते हैं वे "वैमानिक" हैं । इन्द्रक, श्रेणिबद्ध है और पुष्पप्रकीर्णक के भेद से विमान अनेक प्रकार के हैं । उनमें से इन्द्रक विमान इन्द्र के समान मध्य में स्थित है। उनके चारों ओर आकाश के प्रदेशों में पंक्ति के समान जो स्थित है वे श्रेणिविमान हैं। तथा बिखरे हुए फूलों के समान विदिशाओं में जो विमान अवस्थित हैं वे पुष्पप्रकीर्णक विमान हैं।
वैमानिक देवों के भेद
कल्पोपन्नाः कल्पातीताश्च । ( 17 )
These are of 2 kinds :
Kalpopanna born in the 16 heavens and with 10 grades.
These alone have to 10 classes.
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Kalpatita, born beyond the 16 heavens. They have no grades or classes. They are called Anamindra - lit. I am Indra and are all alike.
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