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________________ सोलह स्वर्गों से ऊपर के देवों के सुख परेऽप्रवीचाराः। (9) The remaining (Celestial beings are) without sexual desire. (There are no Goddesses there. Beyond the 16th heaven there is only the mali sex. बाकी के सब देव विषय सुख से रहित होते हैं। बाकी के सब देव अर्थात् पूर्वोक्त सातवें एवं आठवें सूत्र में जितने देवों के विशेष विषय सुख का वर्णन किया है उसको छोड़कर शेष नवग्रैवेयक आदि में विशेष विषय सुख नहीं है। चारित्र मोहनीय कर्म के तीव्र उदय से जो वेदना होती है उसका प्रतिकार करने के लिए जीव कामवासना का सेवन करता है। परन्तु नवग्रैवेयक, विजय वैजन्त, जयन्त, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि के देव अधिक पुण्यशाली होने के कारण तथा शुभ लेश्या होने के कारण उन्हें विशेष काम विकार की वेदना नहीं होती है। इसके अभाव से उन्हें परमसुख प्राप्त होता है। भवनवासियों के इस भेद भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमाराः।(10) (The 10 classes of) Residential celestial beings (are): Asura Kumar, Naga, Vidyuta, Suparna, Agni, Vata, Stanita, Udadhi, Dvipa and Dik Kumara: भवनवासी देव दस प्रकार के हैं-असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार, सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार और दिक्कुमार। - कौमार, रूप, वय विशेष, विक्रियादि योग होने से वे कुमार कहलाते हैं। सर्व देवों की अवस्था, आयु एवं स्वभाव निश्चित है तथापि उनका.विक्रिया करने का स्वभाव कौमार रूप विशेष अवस्था सरीखा होता है। कुमारों के ही समान उनके वेश-भूषा, भाषा, आभूषण, प्रहरण आवरण यानवाहन होते ' हैं, रागजनित क्रीड़ाओं में आसक्त रहने के कारण ये देव कुमार कहलाते हैं। 233 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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