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________________ 'आ' इस ऐशान स्वर्ग से नीचे जो देव हैं, वे संक्लिष्ट होने से काय (शरीर) से प्रवीचार करते हैं । अर्थात् मानवों के समान स्त्री विषय सम्बन्धी सुख का अनुभव करते हैं- ऐसा समझना चाहिए । शेष स्वर्गों के देवों के विषय शेषाः स्पर्शरूपशब्दमन: प्रवीचारा: । ( 8 ) The others have the sexual enjoyment by means of touch, sight of beauty, sound and mind. शेष देव स्पर्श, रूप, शब्द और मन से विषय सुख भोगने वाले होते हैं । - सात नम्बर सूत्र में वर्णित देवों के विषय सुख काय प्रविचार सहित है। उसके आगे के देवों के सुख का वर्णन इस सूत्र में किया गया है 'वस्तुतः चारों निकाय के देव सच्चे देव नहीं है, क्योंकि वे सर्वकषायों अधीन है। जिन्होंने सम्पूर्ण कषायों और काम को जीत लिया वह देवाधिदेव जिनेन्द्र ही है। केवल देवगति के उदय के कारण इनको रुढ़ि से देव कहते हैं। वे भी कामाग्नि से संतप्त होने के कारण उन को शांत करने के लिए काम सेवन करते हैं। काम सेवन को प्रवीचार कहते हैं । सौधर्म ऐशान कल्पों के देव अपनी देवांगनाओं के साथ मनुष्यों के सदृश काम सेवन करके अपनी इच्छा शांत करते हैं। सानत्कुमार माहेन्द्र कुमार देव स्पर्श मात्र से अपनी पीड़ा शांत करते हैं, ब्रह्म - ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ठ देवों के काम पीड़ा कम होने के कारण देवांगनाओं के रूपावलोकन मात्र से अपनी काम पीड़ा शांत करते हैं। ऊपर-ऊपर के देवों के पुण्य अधिक होने के कारण एवं उनका सुख अधिक होने पर काम पीड़ा कम-कम होती जाती है। इसीलिए शुक्र-महाशुक्र तथा सतार - सहस्रार कल्पों के देव, देवांगनाओं के गीत सुनकर ही काम पीड़ा से रहित हो जाते हैं। आनतादि चार कल्पों के देव मन में देवांगनाओं का विचार करते ही काम वेदना से रहित हो जाते हैं। इसके आगे नौ ग्रैवेयक से सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त सभी देव अहमिन्द्र है । इन अहमिन्द्रों में काम वेदना उत्पन्न ही नहीं होती है। ये प्रवीचार से रहित एवं अन्य देवों से महासुखी है। 232 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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