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स्थिति, कर्मों की स्थिति जानी जाती है। खुलासा इस प्रकार है-प्रमाण अंगुल से परिमित एक योजन लम्बे चौड़े गहरे, तीन गड्ढे करने चाहिए और उन गड्ढ़ों को एक दिन से सात दिन रात्रि तक के भेड़ के बच्चे के रोमों के अति सूक्ष्म जिनका दूसरा विभाग न हो ऐसे टुकड़ों से कूट-कूट कर भरना चाहिये। पुनः एक-एक सौ वर्ष बाद एक-एक रोम का टुकड़ा गड्ढ़े में से निकालना चाहिए। जितने समय में वह गड्ढ़ा खाली होगा उतना काल व्यवहार पल्य' कहलाता है। उन्हीं रोमच्छेदों में से यदि प्रत्येक रोम को असंख्यात करोड़ वर्ष के समयों से छिन्न कर दिया जाए और प्रत्येक समय में एक-एक रोमच्छेद को निकाला जाए तो जितने समय में वह गड्ढ़ा खाली होगा, वह समय 'उद्धार पल्य' का है। दस कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्य का एक उद्धारसागरोपम काल होता है। ढाई उद्धार सागरों के जितने रोमच्छेद हैं, उतने ही द्वीप समुद्र हैं। पुन: उद्धार पल्यों के रोमच्छेदों को सौ वर्ष के समयों से छेद करके एक-एक समय में एक-एक रोमच्छेद के निकालने पर जितने समय में वह गड्ढा खाली होगा उतने समय का एक अद्धापल्य' कहलाता है। दस कोडाकोडी अद्धापल्यों का एक अद्धासागर होता है। दस कोडाकोडी अद्धा सागर का एक अवसर्पिणी
और उतने काल प्रमाण एक उत्सर्पिणी होती है। इस अद्धापल्य से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों की कर्मस्थिति, भवस्थिति आयुस्थिति और कायस्थिति मापी जाती है। गोम्मटसार मैं विभिन्न अन्तर्मुहूर्त की परिभाषा निम्न प्रकार की गई है
ससमयमावलि अवरं, समऊणमुहत्तयं तु उक्कस्सं। मज्झासंखवियप्पं, वियाण अन्तोमुहुत्तमिणं॥(1)
(पृ.262) __एक समय सहित आवलीप्रमाण काल को जघन्य अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। एक समय कम मुहूर्तको उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। इन दोनों के मध्यके असंख्यात भेद हैं। इन सबको भी अन्तर्मुहूर्त ही जानना चाहिये।
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