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________________ के कर्म का आरम्भ यहीं पर होता है इसलिए भरतादिक को कर्म भूमि कहना चाहिए। अथवा मोक्ष प्राप्ति रूपी कर्मकार्य इन क्षेत्रों से होता है इसलिए भी इन्हें कर्म भूमि कहते हैं। अथवा असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प आदि कर्म इन भूमियों में ही पाये जाते हैं इसलिए इन्हें कर्म भूमि कहते हैं। अन्य क्षेत्रों में दस प्रकार के कल्पवृक्ष प्राप्त भोगों को भोगते हुए वहाँ के जीव असि, मसि आदि कर्म नहीं करते हैं तथा मोक्ष प्राप्ति रूप कार्य भी वहाँ पूर्ण रूप से नहीं होता है। यद्यपि वहाँ के जीव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान को धारण कर सकते हैं परन्तु चारित्र धारण नहीं कर सकते उनके अविरत रूप परिणाम सदा रहता है और वे भोग में सदा मस्त रहते हैं। वहाँ के जीव न मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं, न मुनि बन सकते हैं न विशेष पुण्य प्रकृति का संचय कर सकते हैं और न ही सप्तम नरक जाने योग्य पाप कर्म कर सकते हैं। अढ़ाई द्वीप रूपी मनुष्य क्षेत्र में कुल पैंतालीस क्षेत्र हैं। इनमें से 5 भरत, 5 ऐरावत, 5 विदेह ये 15 कर्म भूमियाँ हैं और शेष 30 भोग भूमियाँ हैं। मनुष्यों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते। (38) The age of human beings (ranges from) a maximum of 3 palyas to a minimum of one Antara-muhurta. मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्य और जघन्य अन्तर्मुहूर्त है। काल की स्थिति को जानने के लिए यहाँ काल गणना दे रहे हैं व्यवहार, उद्धार और अद्धापल्य के भेद से पल्य तीन प्रकार का है। व्यवहार पल्य, उद्धारपल्य, अद्धापल्य इस प्रकार पल्य के तीन विभाग किये जाते हैं। ये तीनों पल्य सार्थक नाम के धारक हैं। इनमें उद्धार और अद्धापल्य के व्यवहार में कारण होने से पहले पल्य का नाम व्यवहार पल्य है। इस व्यवहार पल्यं से किसी भी चीज का प्रमाण नहीं होता। दूसरे पल्य का नाम उद्धारपल्य है। इस उद्धारपल्य के रोमच्छेदों से द्वीप, समुद्रों की संख्या का निर्णय होता है अर्थात् इस पल्य के द्वारा द्वीप समुद्रों की गणना की जाती है। तीसरा अद्धापल्य है। अद्धा-काल को कहते हैं। अद्धापल्य से आयु की 222 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004251
Book TitleSwatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanaknandi Acharya
PublisherDharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
Publication Year1992
Total Pages674
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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